Aug 23, 2023, 07:33 PM IST

चांद पर किस खजाने की तलाश में लगे हैं सभी देश, जो खर्च कर रहे करोड़ों

Juhi Kumari

भारत के इस स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, इसरो (ISRO) चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3) की कक्षा को कम करने की कोशिश में लगा है.

दरअसल, भारत चंद्र लैंडिंग के अपने सपने को पूरा करने के बहुत करीब है.

रूस ने भी इसी सप्ताह अपने 47 वर्षों के प्रयास से पहला चंद्रमा-लैंडिंग अंतरिक्ष यान लॉन्च किया है. 

बात करें अमेरिका और चीन की तो ये भी साल 2030  तक अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेंगे. 

तो ऐसे में सवाल है कि सभी विश्व शक्तियां पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा पर क्यों जाना चाहते हैं ?

TOI रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने ही सबसे पहले चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की खोज की थी. 

साल 2008 में, चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर हाइड्रॉक्सिल पाटिकल्स का पता लगाया था.

नासा के मुताबिक हीलियम-3 जो पृथ्वी पर कम ही पाया जाता है ये चंद्रमा पर लगभग दस लाख टन तक मौजूद है.

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का कहना है कि ये हीलियम आइसोटोप एक संलयन रिएक्टर में परमाणु ऊर्जा प्रदान कर सकता है.

बोइंग के शोध से पता चलता है कि पृथ्वी पर जो धातुएं दुर्लभ है जैसे- स्मार्टफोन, कंप्यूटर और उन्नत प्रौद्योगिकियों में इस्तेमाल किया जाने वाला स्कैंडियम, इट्रियम और 15 लैन्थनाइड हैं. ये सभी दुर्लभ धातुएं चंद्रमा पर पाएं जाते हैं.

संयुक्त राष्ट्र 1966 बाह्य अंतरिक्ष संधि की माने तो कोई भी राष्ट्र चंद्रमा या अन्य खगोलीय पिंडों पर संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता है और अंतरिक्ष की खोज में सभी देशों की भागीदारी होनी चाहिए.