Sep 18, 2024, 04:52 PM IST
आमतौर पर पितृपक्ष में तर्पण, श्राद्ध आदि का कार्य घर के पुरुष ही करते हैं. लेकिन, जिस घर में पुरुष न हो वहां हर बार पूर्वजों के श्राद्ध, तर्पण आदि में दिक्कत आती है.
ऐसे में एक सवाल बार-बार लोगों के सामने उठता है कि क्या महिलाएं श्राद्ध, तर्पण या फिर पिंडदान कर सकती हैं? गरुड़ पुराण में इसके लिए क्या नियम हैं...
वेद-पुराणों के अनुसार पितृपक्ष के दौरान किसी भी परिस्थिति में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान इत्यादि रोकना शुभ नहीं माना जाता है, इससे पितृ नराजा होते हैं.
कहते हैं कि माता सीता ने भी फालगु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू की पिंडी बनाकर अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था.
शास्त्रों के अनुसार, पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध कर सकता है, पौत्र या प्रपौत्र को भी श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त है. पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध-कर्म कर सकता है.
इसके अलावा भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है और गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी होता है. वहीं कुछ परिस्थितियों में महिलाएं भी पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान कर सकती हैं.
कन्याएं, बहु या फिर पत्नी श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान करती हैं तो पितर उसे स्वीकार कर लेते हैं और शुभ आशीर्वाद देते हैं.
पुराणों में महिलाओं के लिए पिंडदान और श्राद्ध करने के कई नियम बताए गए हैं, इन नियमों का पालन करते हुए महिलाएं श्राद्ध और पिंडदान कर सकती हैं.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.