भारत में कई सालों तक मुगलों ने शासन किया और इस दौरान तवायफें मुगल शासकों का मनोरंजन करती थीं.
तवायफ नाच-गा कर सभी का मनोरंजन करती थी. ऊंचे तबके के लोग तब तवायफ के कद्रदान होते थे.
माना जाता है कि 18वीं सदी में दिल्ली के चावड़ी बाजार में तवायफों का मोहल्ला हुआ करता था.
तवायफों के इस मोहल्ले में अंग्रेज और उनके सैनिक भी मनोरंजन के लिए जाते थे.
माना जाता है कि फ्रांस के रहने वाले वॉल्टर रेनहार्ड सोम्ब्रो मुगलों के लिए भाड़े पर सैनिक अवसर के रूप में काम करते थे. एक दिन वह भी दिल्ली के चावड़ी बाजार के एक कोठे में गए.
कोठे में वॉल्टर रेनहार्ड की नजर एक बेहद खूबसूरत लड़की पर पड़ी और उसे देखते ही रेनहार्ड अपना दिल हार बैठे.
रेनहार्ड को पसंद आने वाली लड़की का नाम फरजाना था. इसके बाद रेनहार्ड ने फरजाना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा.
बाद में फरजाना को भी रेनहार्ड से प्यार हो गया और दोनों ने ईसाई रीति रिवाज से शादी कर ली.
शादी के बाद फरजाना बेगम समरू के नाम से जानी जाने लगीं. मुगल शासक शाह आलम के कहने पर रेनहार्ड ने सहारनपुर के रोहिल्ला जाबिता खान को पराजित किया था.
इसके बाद शाह आलम ने खुश होकर रेनहार्ड को दोआब में एक बड़ी जागीर दे दी.
इसके बाद रेनहार्ड और उसकी पत्नी समरू सरधना में रहने लगे और रेनहार्ड की मृत्यु के बाद समरू को सरधना का जागीदार घोषित कर दिया गया.