Jul 20, 2024, 09:11 PM IST

इन मौकों पर कोठे पर पसर जाता था सन्नाटा, नहीं होता था तवायफों का मुजरा

Smita Mugdha

तवायफों का कोठा हमेशा गुलजार रहता था और हर शाम वहां महफिल जमती थी.

हालांकि, कुछ ऐसे भी मौके होते थे जब कोठे की शमा नहीं जलती थी और न तवायफों का मुजरा होता था. 

ऐसे मौके बेहद कम होते थे जिस शाम कोठों पर रौनक नहीं होती थी और वहां संगीत की महफिल न जमी हो.

रेबा मुहुरी, सबा दीवान जैसी लेखिकाओं ने अपनी किताब में लिखा है रमजान में तवायफों की महफिल नहीं सजती थी. 

कोठे के किसी सदस्य, कलाकार या तवायफ की मौत के दिन भी गम मनाया जाता था और मुजरा नहीं होता था. 

शहर या देश के किसी खास हस्ती, बड़े नेता वगैरह की मौत के दिन तवायफें भी शोक में शामिल होती थीं. 

आजादी की लड़ाई के दौरान कई ऐसे मौके आए थे जब तवायफों ने अंग्रेजी हुकूमत की ज्यादती के विरोध में किसी रोज कोठे पर शमा नहीं जलाई थी.

इसी तरह से किसी खास सामाजिक और धार्मिक मौकों पर जनभावना के सम्मान में कोठे पर महफिल नहीं जुटती थी.

तवायफों के कोठे पर अदब और तहजीब के साथ ही सामाजिक भावनाओं का भी ख्याल रखा जाता था.