रावण के सीता का अपहरण करके लंका लाने पर उनके छोटे भाई विभीषण ने इसका विरोध किया था. विभीषण ने इसे रावण के अंत का मार्ग कहा था.
श्रीराम के वानर सेना लेकर लंका पहुंचने पर भी विभीषण ने ही सीता वापस लौटाने की सलाह दी थी. इससे नाराज होकर रावण ने उन्हें निकाल दिया था.
विभीषण से नाराज रावण ने उनका वध नहीं किया. उसने विभीषण को छोटा भाई सोचकर नहीं छोड़ा था बल्कि उनकी बेटी के डर से ऐसा किया था.
पुराणों के मुताबिक, विभीषण और सरमा की बेटी त्रिजटा के सात्विक रूप के कारण पूरी दुनिया को डराने वाला रावण भी उससे कांपता था.
कथा-कहानियों के मुताबिक, राक्षस कुल में विभीषण की बेटी के तौर पर जन्मी त्रिजटा बेहद धार्मिक विचारों की थी और वह बेहद तेजस्वी थी.
कथाओं के मुताबिक, त्रिजटा के पास विष्णु भगवान की पूजा के कारण इतना पुण्यबल था कि वे अपने तेज से ही रावण को जलाकर खाक कर सकती थीं.
त्रिजटा ने राम-रावण युद्ध की भविष्यवाणी बहुत पहले कर दी थी. साथ ही रावण के वध की भी भविष्यवाणी कर दी थी.
त्रिजटा की भविष्यवाणी सुनने के बाद रावण बेहद नाराज हुआ था, लेकिन उसके तपोबल के कारण वह कुछ नहीं कह सका था.
त्रिजटा ने ही लंका की अशोक वाटिका में माता सीता का ध्यान रखा था. रामचरित मानस के मुताबिक, वह माता सीता की प्रहरी के तौर पर अशोक वाटिका में ही रहती थीं.
वाल्मिकी रामायण के मुताबिक, त्रिजटा ने माता सीता को अपनी पुत्री मान लिया था. अशोक वाटिका में वे सीता जी को पुत्री कहकर ही बुलाती थीं.
रामचरित मानस में कहा गया है कि त्रिजटा के डर से ही दूसरी राक्षसियां और खुद रावण भी सीता को परेशान नहीं करते थे. वे ही सीता जी को राम के आने का ढांढस बंधाती थीं.