Nov 8, 2023, 04:49 PM IST

इन 7 नियमों से लड़ा गया था महाभारत का युद्ध

Kuldeep Panwar

महाभारत का युद्ध इतना भयानक था कि 18 दिन की लड़ाई में ही दुनिया की अधिकतर सेनाएं खत्म हो गई थीं. दुनिया के ज्यादातर राजा कौरवों या पांडवों की तरफ से युद्ध में लड़ने उतरे थे.

इसे सत्य और न्याय का युद्ध कहा गया था, क्योंकि एकतरफ पांडव थे, जिनका राज्य उनके चचेरे कौरव भाइयों ने जुए में धोखे से छीन लिया था तो दूसरी तरफ कौरव खड़े थे.

कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान रोजाना दस लाख से ज्यादा सैनिकों की मौत हुई थी. इसके चलते कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि की मिट्टी पूरी तरह लाल हो गई थी.

इतने भयानक युद्ध के बारे में यदि आपको कोई कहे कि यह तय नियम-कायदों के तहत लड़ा गया था, जिन्हें मानना दोनों ही सेनाओं के लिए अनिवार्य था, तो आप यकीन नहीं करोगे.

दरअसल महाभारत का युद्ध सच में 7 नियम-कायदों के तहत लड़ा गया था. ये नियम-कायदे युद्ध से पहले दोनों तरफ के राजाओं यानी युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच तय हुए थे.

पहला नियम था कि रात के अंधेरे में युद्ध नहीं होगा यानी सूरज उगने की पहली किरण के साथ युद्ध शुरू हो जाएगा और सूर्यास्त के साथ ही युद्ध बंद कर दिया जाएगा.

दूसरा नियम था कि युद्ध के दौरान सेवा का काम करने वाले सेवकों पर कोई हमला नहीं करेगा यानी जो युद्धभूमि में पड़े घायलों को पानी पिला रहे हों या उनका इलाज कर रहे हों, उन पर हमला नहीं होगा.

तीसरा नियम था कि हर योद्धा अपनी बराबरी वाले से ही युद्ध करेगा यानी जो रथ पर सवार है, वो रथ पर सवार महारथी से ही भिड़ेगा. इसी तरह घोड़े वाला घोड़े वाले से और हाथी वाला महारथी हाथी वाले महारथी से ही भिड़ेगा.

चौथा नियम था कि यदि लड़ते समय किसी योद्धा के अस्त्र-शस्त्र गिर जाते हैं यानी वह निहत्था है तो उस पर कोई हमला नहीं करेगा. उसे शस्त्र उठाने का मौका दिया जाएगा.

पांचवां नियम था कि एक महारथी से केवल एक महारथी ही एक बार में युद्ध करेगा. एकसाथ कई महारथी किसी एक महारथी को नहीं घेरेंगे.

छठा नियम था कि हर दिन युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों खेमे के सैनिक एकसाथ बैठकर दोस्त की तरह व्यवहार करेंगे यानी दुश्मनी सूर्यास्त के साथ ही खत्म हो जाएगी.

सातवां और आखिरी नियम था कि जो लोग युद्धभूमि छोड़कर भाग रहे हों या अस्त्र-शस्त्र छोड़कर दूसरे पक्ष के सामने आत्मसमर्पण कर दें, ऐसे योद्धा पर कोई हमला नहीं करेगा.

ये नियम युद्ध के दौरान तीन बार टूटे थे. पहली बार कौरव पक्ष के महारथियों ने अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को चक्रव्यूह में एकसाथ घेरकर उस पर हमला किया था.

दूसरी बार चक्रव्यूह में सात महारथियों के वारों का सामना वीरता से कर रहे अभिमन्यु के अस्त्र-शस्त्र गिर जाने पर यानी उसके निहत्था हो जाने पर भी हमला बंद नहीं किया गया.

तीसरी बार अर्जुन से युद्ध करते हुए कर्ण के रथ का पहिया धरती में धंस गया था. उसने अस्त्र-शस्त्र रखकर निहत्था होने के बाद पहिया निकालने की कोशिश की, इसी दौरान अर्जुन ने उसे तीरों से छलनी कर दिया था.

Disclaimer: यह पूरी जानकारी सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं व आस्थाओं पर आधारित है. इसकी सत्यता की पुष्टि Dnaindia Hindi नहीं करता है.