May 13, 2024, 09:16 PM IST
तवायफ के ताने ने कराई थी 1857 की क्रांति
Kuldeep Panwar
तवायफों को भले ही भारतीय समाज में बहुत अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति में उनकी अहम भूमिका थी.
मेरठ की धरती से फूटी 1857 की क्रांति की पहली चिंगारी तवायफों के ताने ने ही बोई थी, जिसके बाद सैनिकों ने अंग्रेजों पर हमला बोल दिया था.
दरअसल 1857 में अंग्रेजों ने सैनिकों को चर्बी लगे कारतूस दिए थे. इनमें गाय और सूअर की चर्बी लगे होने की अफवाह हर तरफ उड़ी हुई थी.
मेरठ में सदर बाजार की तवायफों ने कोठों के सामने से निकलने वाले भारतीय सैनिकों को रोजाना इसे लेकर ताना मारना शुरू कर दिया.
इन तानों के कारण 25 अप्रैल, 1857 को 85 भारतीय सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूस का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया. इसका जिक्र ब्रिटिश गजेटियर में भी है.
इन 85 सैनिकों को गिरफ्तार कर उनकी वर्दी उतारकर उन्हें नंगा कर दिया गया और मेरठ के सेंट जोंस चर्च के पीछे मैदान में धूप में रखा गया.
6,7 और 8 मई को इन सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया. फिर उन्हें नंगे बदन और नंगे पैर ही तपती दुपहरी में विक्टोरिया पार्क जेल ले जाया गया.
तवायफों ने फिर से बाकी भारतीय सैनिकों को ताना मारा, 'धर्म की रक्षा के लिए तुम्हारे भाई बेड़ियों में कैद हैं और तुम कायरों की तरह घूम रहे हो.
'मेरठ के 5 हजार साल' किताब के मुताबिक, इसके बाद 10 मई, 1857 को बाकी सैनिकों ने भी शाम 5 बजे चर्च का घंटा बजते ही विद्रोह कर दिया.
इस तरह तवायफों के ताने ने अंग्रेजों की गुलामी से भारत की आजादी के पहले संग्राम की नींव रखी थी, जिसे आज भी याद किया जाता है.
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