बाबू वीर कुंवर सिंह की बहादुरी के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं. 80 साल की उम्र इस शेरदिल योद्धा ने अंग्रेजी हुकूमत और उनकी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे.
लेकिन इसके अलावा राजा वीर कुंवर सिंह की प्रें कहानी भी काफी मशहूर थी. यह कहानी आरा की मशहूर तवायफ धरमन बाई से उनके प्रेम की.
धरमन बाई, कुंवर सिंह की केवल प्रेमिका ही नहीं, बल्कि अंग्रेजों के साथ युद्ध में उनकी महत्वपूर्ण सहयोगी और कुशल रणनीतिकार भी थी.
कुछ दिनों बाद ही दोनों के प्रेम के चर्चे शुरू हो गए. देखते ही देखते रानी सकलनाथो को इसका पता चल गया.
रानी काफी समय से बीमार चल रहीं थी, इसके बाद अचानक एक दिन उन्होंने राजा कुंवर सिंह और धरमन बाई को मिलने के लिए बुलाया.
ऐसे में जब रानी का संदेशा आया, तो कुंवर सिंह मुश्किल में पड़ गए. लेकिन पुरोहित की सलाह पर दोनों रानी के कक्ष में गए.
अपराध बोध से भरी धरमन बाई कमरे में गई और रानी के पैरों की तरफ खड़े वीर कुंवर के ठीक बगल में हाथ जोड़कर खड़ी हो गई.
रानी ने धरमन बाई को अपने पास बुलाया और अपनी मांग से एक चुटकी सिंदूर लिया और उसे धरमन बाई की मांग में लगा दिया.
इसके बाद रानी सकलनाथो ने धरमन का हाथ थामा और उसे कुंवर सिंह के हाथ में देते हुए बोलीं, 'आज से तुम तवायफ नहीं, बल्कि जगदीशपुर की रानी बनके रहोगी.'
उन्होंने एक तवायफ और एक कुंवर के रिश्ते को सामाजिक मान्यता दे दी. धरमन बाई ने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया.