Jul 12, 2024, 10:46 PM IST
तवायफों के हर मुजरे में जरूरी होती थी ये 3 रस्में
Smita Mugdha
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ये नियम हर मुजरे में लागू होते थे और इसे कला के साथ जुड़ी परंपरा के तौर पर देखा जाता था.
तवायफों का कोठा सिर्फ नाच-गाने और संगीत की जगह नहीं थी, बल्कि यह अदब और कला की जगह भी होती थी.
मुजरे के दौरान रस्म के मुताबिक तवायफें गजरा और फूल लगाती थीं लेकिन उनके हाथ से फूल कोई ले नहीं सकता था.
यह मुजरा करने वाली तवायफ की मर्जी होती थी कि वह अपने हाथों से फूल और गजरा अपने किस कद्रदान को दें.
इसी तरह से एक रस्म शमा जलाने की होती थी, जिसमें शमा जलाते ही तवायफों के मुजरा शुरू होता था.
शमा की रोशनी में तवायफें अपनी प्रस्तुति देती थीं और एक बार कार्यक्रम शुरू होने के बाद बीच में उठकर नहीं जा सकते थे.
मुजरा खत्म होने के बाद तवायफ अपनी पसंद और सुविधा के मुताबिक शमा बुझाती थीं और इसके बाद कार्यक्रम खत्म हो जाता था.
शमा बुझाने का मतलब होता था कि महफिल अब खत्म हो गई है और कोई और कला प्रदर्शन अब नहीं होगा.
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