Aug 17, 2024, 12:20 AM IST

इन 6 तवायफ का नाम आज भी इज्जत से लेते हैं लोग

Kuldeep Panwar

तवायफ को मौजूदा समाज में बहुत इज्जत की नजर से नहीं देखा जाता है. यह इमेज हिंदी फिल्मों ने बना दी है, जिनमें उन्हें शरीर बेचने वाली वेश्या दिखाया जाता है.

इसके उलट पुराने भारतीय समाज में तवायफ को शायरी, संगीत, नृत्य और गायन जैसी कलाओं को आगे बढ़ाने वाली कलाकार माना जाता था.

आपको भले ही आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन असल में पुराने समय में तवायफ ही बड़े घरों के युवाओं को तहजीब सिखाने वाली टीचर होती थी.

तब तवायफों को सम्मान की नजर से देखा जाता था. वे बेहद संपन्न होती थीं. लखनऊ की तवायफों के सबसे ज्यादा टैक्स देने के दस्तावेज भी हैं.

हम आपको 6 ऐसी ही तवायफों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने इस पेशे को गरिमा दी और उनका नाम आज भी बेहद इज्जत से लिया जाता है.

'अवध की बेगम' मुहम्मदी खानम यानी बेगम हज़रत महल पेशे से तवायफ थी, लेकिन उनसे अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने निकाह किया था.

1856 में अंग्रेजों के अवध पर कब्जा करने पर वाजिद अली शाह कलकत्ता भाग गए तो बेगम हजरत महल ने ही क्रांति का बिगुल छेड़ा था. 

2 नवंबर, 1902 को डिस्क पर पहला भारतीय गीत रिकॉर्ड करने वाली बनारस-कलकत्ते की मशहूर तवायफ गौहर जान को मौजूदा फिल्मी संगीत की 'गॉडमदर' कहते हैं.

आर्मेनियाई कपल की संतान गौहर का असली नाम एंजेलिना योवर्ड था. वे 19वीं सदी की सबसे महंगी गायिका थीं, जो एक महफिल के लिए सोने की 101 गिन्नी लेती थीं.

रानियों से भी ज्यादा महंगा पहनावा पहनने वालीं गौहर ने महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन की मदद करने के लिए बड़े पैमाने पर दान दिया था.

जोहरा बाई की परवरिश तवायफों के कोठे पर हुईं, लेकिन उस्ताद शेर खान की इस शिष्या का नाम मशहूर फैयाज खान और बड़े गुलाम अली खान जैसे गायक भी सम्मान से लेते थे.

जद्दनबाई को आज के लोग फिल्म स्टार संजय दत्त की नानी और नर्गिस की मां के तौर पर जानते हैं, लेकिन उनकी पहचान तवायफ के कोठे से उठकर समाज में नाम कमाने की भी है.

बॉलीवुड की पहली महिला म्यूजिक डायरेक्टर रहीं जद्दनबाई का नाम इसलिए भी सम्मान से लिया जाता है, क्योंकि वे क्रांतिकारियों को छिपने की पनाह देती थीं.

बनारस घराने की गायिका रसूलन बाई का जिक्र तो 'ईश्वर की आवाज' कहकर महान शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान भी सम्मान से करते थे.

अजीजनबाई को तवायफ से भी ज्यादा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाका के तौर पर जानते हैं, जिनकी तवायफों की फौज से अंग्रेज भी कांपते थे.