May 21, 2024, 07:20 PM IST

लखनऊ के टुंडे कबाब की क्या है असली कहानी

Rahish Khan

लखनऊ के टुंडे कबाब (Tunde ke kabab) अपने स्वाद के लिए देशभर में मशहूर हैं.

सालों से लखनऊ के अकबरी गेट की गलियां में टुंडे कबाब की खुशबू दिनभर महकती रहती है. 

लखनऊ में टुंडे कबाब की शुरुआत साल 1905 में हुई थी. हाजी मुराद अली लखनऊ के अकबरी गेट के पास एक छोटी सी दुकान लगाए करते थे.

कबाब का स्वाद ऐसा था कि इसकी शोहरत पूरे लखनऊ में फैल गई और धीरे-धीरे देशभर से लोग कबाब खाने पहुंचने लगे.

इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे दिलचस्प कहानी है. दरअसल, आमतौर पर टुंडे उसे कहा जाता है जिसके एक हाथ ना हो.

रईस अहमद बताते हैं कि उनके पिता हाजी मुराद अली को पतंग उड़ाने का बहुत शौक था. एक दिन वे पतंग उड़ाते हुए गिर गए.

जिसकी वजह से उनका एक हाथ टूट गया. जिसे बाद में काटना पड़ा. इसके बाद मुराद अली अपने पिता के साथ दुकान पर बैठने लगे.

मुराद अली के टुंडे होने की वजह से जो लोग कबाब खाने आते थे वो 'टुंडे कबाब' के नाम से जानने लगे. फिर धीरे-धीरे यही नाम पड़ गया.

रईस अहमद के परिवार के अलावा और कोई दूसरा शख्स टुंडे कबाब बनाने की खास विधि और मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में नहीं जानता.