Dec 20, 2024, 08:56 PM IST

संविधान और लोकतंत्र के बीच क्या है फर्क, डीयू के प्रोफेसर से जानें

Meena Prajapati

देश के संसद में संविधान पर चर्चा चल रही है. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने तर्क रख रहे हैं. 

संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर इस गौरवशाली यात्रा पर संसद के सत्र में इस पर खूब चर्चा चल रही है. 

ऐसे में लोगों के बीच एक आम सवाल है कि संविधान और लोकतंत्र के बीच फर्क क्या है.

तो इस अंतर को समझा रहे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार. 

संविधान किसी भी तंत्र में हो सकता है. सम्यवादियों का भी संविधान होता है. और वह अपने संविधानिक मूल्यों के आधार पर लोकतंत्र के रूप को परिभाषित करते हैं. जैसे की साम्यवादी लोकतंत्र, उदारवादी लोकतंत्र.

तंत्र

संविधान किसी शासन तंत्र को चलाने का एक कानूनी दस्तावेज होता है, जबकि लोकतंत्र की परिपाटी संविधान में वर्णित स्वतंत्रता, समानता, अधिकार, न्याय और सेकुलर जैसे सिद्धांतो पर निर्भर करती है.

दस्तावेज 

किसी भी संविधान को केंद्रिकृत संविधान या यूं कहें की शासन सत्ता केंद्रित भी हो सकता है, जबकि लोकतंत्र में लोक यानि जनता ही केंद्र में होता है.

जनता 

संविधान अपने आप में अपने देश व राष्ट्र की संप्रभूता की पहली गारंटी होता है, जबकि लोकतंत्र अपने आप में स्वतंत्रता, समानता और गरिमा जैसे मूल सिद्धांतों के माध्यम से किसी समाज, राज्य में इन्हें प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहता है.

 गारंटी

संविधान चुनावों, दल, संगठनों, संस्थानों, शासन प्रशासन आदि को किस तरह काम करना चाहिए यह सब नियमबद्ध वर्णन करता है, जबकि यह सब नियमबद्धता का सही तरह से पालन करना ही लोकतंत्र होता है.

पालन