Oct 10, 2023, 10:31 PM IST

कहां है लाक्षागृह, जिसमें जलाए गए थे पांडव

Kuldeep Panwar

महाभारत में लाक्षागृह की घटना को बेहद अहम माना जाता है, जिसमें लाख (बेहद ज्वलनशील पदार्थ) के बने महल में पांडवों को अंदर बंद करके जलाकर मारने की साजिश दुर्योधन ने की थी.

विदुर की मदद से पांडव लाक्षागृह नाम के महल में खुद ही आग लगाकर एक सुरंग के रास्ते सुरक्षित निकल आए थे. इसे महाभारत का अहम मोड़ माना जाता है.

यह लाक्षागृह कहां था? क्या आज भी लाक्षागृह मौजूद है? क्या आज भी लाक्षागृह की सुरंग मौजूद है? ऐसे कई सवाल आपके मन में इस किस्से को जानकर उठ रहे होंगे. चलिए हम उनका जवाब देते हैं.

महाभारत में कौरवों और पांडवों के पुरखों यानी भरत वंश की राजधानी हस्तिनापुर दिल्ली के करीब मेरठ जिले में है. हालांकि यहां महाभारत कालीन महल ध्वस्त हो चुके हैं, लेकिन लाक्षागृह अब भी मौजूद है.

हस्तिनापुर से करीब 70 किलोमीटर दूर हिंडन नदी और कृष्णी नदी के संगम पर बागपत जिले का बरनावा गांव है. यही गांव महाभारत के समय वारणावर्त कहलाता था, जिसमें लाक्षागृह बनाया गया था.

वारणावर्त गांव पांडवों को भी बेहद प्रिय था. इसका सबूत ये है कि महाभारत युद्ध टालने के लिए पांडवों ने जो पांच गांव कौरवों से मांगे थे, उनमें से एक यह गांव भी था.

बरनावा गांव में हाइवे के किनारे मौजूद एक ऊंचे टीले पर लाक्षागृह महल के अवशेष अब भी मौजूद हैं, जिनका संरक्षण भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) करता है.

लगभग 100 फुट ऊंचे और 30 एकड़  में फैले टीले पर जहां लाक्षागृह के अवशेष हैं, वहां पर वह सुरंग भी मौजूद है, जिससे पांडव आग लगने के बाद सुरक्षित बचकर निकले थे.

लाक्षागृह की इस सुरंग में अब ज्यादा अंदर तक जाने की इजाजत नहीं है, लेकिन इसका दूसरा छोर हिंडन तट पर माना गया है. यहां पांडव किला भी मौजूद है, जिसमें प्राचीन काल की बहुत सारी मूर्तियां अब भी रखी हुई हैं.  

दिल्ली के लालकिले से बरनावा के लाक्षागृह की दूरी मेरठ के रास्ते करीब 104 किलोमीटर है, जबकि वाया बागपत-बड़ौत होते हुए यह करीब 80 किलोमीटर दूर मौजूद है.

लाक्षागृह को लेकर एक दावा उत्तराखंड भी करता है. यहां देहरादून से करीब 125 किलोमीटर दूर लाखामंडल नाम की जगह पर लाक्षागृह होने का दावा किया जाता है.

खुदाई में हजारों साल पुरानी मूर्तियां मिलने के लिए विख्यात लाखामंडल में भी एक सुरंग है, जिसे लाक्षागृह की गुफा कहा जाता है. इस गुफा में शेषनाग के फन के नीचे मौजूद स्वयंभू शिवलिंग पर हमेशा पानी टपकता रहता है.

लाखामंडल के मुकाबले बरनावा में लाक्षागृह होने के सबूत ज्यादा मौजूद हैं. बरनावा हस्तिनापुर के करीब है. साथ ही यह सिनौली से भी बेहद नजदीक है, जहां बड़े पैमाने पर महाभारतकालीन सबूत खुदाई में मिले हैं.