Feb 2, 2025, 04:38 PM IST

बसंत पंचमी पर क्या करता है पाकिस्तान

Kuldeep Panwar

बसंत पंचमी का पर्व हिंदू धर्म में बेहद अहम होता है,क्योंकि इसके साथ ही रंगों के फाल्गुन माह के आगमन की आहट सबको मिल जाती है.

ऋतु परिवर्तन के पर्व को पूरा हिंदुस्तान धूमधाम से मनाता है, पर क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान के मुस्लिमों में भी इसका इतना ही क्रेज है.

उर्दू में बसंत पंचमी के जश्न-ए-बहारां कहते हैं. पाकिस्तान में इसे बसंत कहते हैं. वहा लाहौर में इस दिन मेला चिमन का भी आयोजन होता है.

पाकिस्तान में भले ही हिंदू-मुस्लिम का भेदभाव बहुत है, लेकिन बसंत पंचमी के दिन दोनों ही धर्मों के लोग इसके खुमार में बराबर डूबे होते हैं.

हिंदुस्तान में जहां बसंत पंचमी पर्व मां सरस्वती की वंदना का त्योहार है, वहीं लाहौर में इसके जरिये एक वीर बलिदानी बालक याद किया जाता है.

1742 में मुगल शासकों के खिलाफ अडिग खड़े होकर अपना बलिदान देने वाले 14 वर्षीय वीर हकीकत राय को पूरा लाहौर श्रद्धांजलि देता है.

स्यालकोट के व्यापारी बागमल और उनकी पत्नी कौरां के घर 1728 को जन्मे हकीकत राय ने छोटी उम्र में ही सारे पुराण याद कर लिए थे.

1742 में मुगल शासक ने सभी हिंदुओं का मुसलमान बनाने का फरमान सुनाया, जिसे लाहौर के नवाब जकारिया खान को लागू करना था.

हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाया जाने लगा. इसका विरोध हकीकत राय ने किया तो उन्हें बंदी बनाकर धर्म बदलने पर रिहाई की शर्त रखी गई.

हकीकत राय के रिहा करने पर उनके मां-बाप रहम की गुहार लेकर रोते हुए स्यालकोट से पैदल नवाब जकारिया खान के पास लाहौर पहुंचे.

नवाब जकारिया खान ने हकीकत राय को लाहौर बुला लिया. वहां भी हकीकत ने धर्म परिवर्तन ठुकरा दिया. तब उन्हें मौत की सजा सुनाई गई.

14 साल के हकीकत राय को बसंत पंचमी के दिन शाही किले के सामने जमीन में आधा गाड़कर लोगों को पत्थर मारने का आदेश दिया गया.

हकीकत राय बच्चा होने के बावजूद लोगों के पत्थर खाकर अधमरा होने पर भी धर्म बदलने को तैयार नहीं हुए तो जल्लाद ने उनका सिर काट दिया.

नवाब जकारिया खान भी छोटे बच्चे की शहादत से इतना प्रभावित हुआ कि उसने हिंदुओं को वहीं पर उनकी समाधि बनाने की इजाजत दे दी.

तब से ही लाहौर के हिंदू और धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बने लोग हर साल बसंत पंचमी मनाकर हकीकत राय की वीरता को याद करते हैं.