Apr 27, 2025, 12:16 AM IST
एसी नहीं था तो कैसे ठंडा होता था ट्रेन का डिब्बा
Kuldeep Panwar
ट्रेन में सफर के लिए आजकल एसी कोच हर किसी की पसंद होता है, जिससे गर्मी से बचाव के साथ लंबे से लंबा सफर आसानी से तय हो जाता है.
क्या कभी आपने सफर करते हुए सोचा है कि जब कई दशक पहले एयरकंडीशनर का आविष्कार नहीं हुआ था, तब ये एसी कोच कैसे होते थे?
यदि आप सोच रहे हैं कि भारत में एसी ट्रेनों कुछ साल पहले ही शुरू हुई हैं तो बता दें पहली भारतीय एसी ट्रेन करीब 90 साल पहले चली थी.
आजादी से भी काफी पहले फ्रंटियर मेल (मौजूदा नाम गोल्डन टेंपल मेल) ट्रेन में पहली बार भारत में एसी कोच का इस्तेमाल किया गया था.
फ्रंटियर मेल का पहली बार संचालन आजादी से करीब 19 साल पहले 1 सितंबर, 1928 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से मुंबई सेंट्रल तक हुआ था.
फ्रंटियर मेल उस समय सबसे तेज ट्रेन थी, जिसके बारे में मशहूर था कि रोलेक्स वॉच गलत टाइम बता सकती है पर यह ट्रेन लेट नहीं हो सकती.
अब मुंबई CST से अमृतसर के बीच में गोल्डन टेंपल मेल नाम से चलने वाली इस ट्रेन में साल 1934 में पहली बार एसी कोच लगाया गया था.
अब आपको बताते हैं कि बिना एयरकंडीशनर के भी इस ट्रेन के एसी कोच को ठंडा रखने के लिए क्या गजब तकनीक अपनाई जाती थी.
दरअसल फ्रंटियर मेल के एसी कोच को बर्फ की सिल्लियों के जरिये ठंडा रखा जाता था, जो कोच के नीचे लगे खास बॉक्स में भर दी जाती थी.
एसी कोच के आइस बॉक्स में पंखे लगे होते थे, जो बर्फीली हवा को खींचकर कोच के अंदर फैलाते थे और धीरे-धीरे पूरा कोच ठंडा हो जाता था.
एसी कोच की बर्फ की सिल्लियों को लंबे सफर में पहले से तय स्टेशनों पर फिर से आइस बॉक्स में लोड करते थे जिससे ठंडक बनी रहती थी.
यदि आप यह सोच रहे हैं कि इन एसी कोच के सफर का मजा आम भारतीय को भी लेने का मौका मिलता था तो बता दें कि आप गलत हैं.
ब्रिटिश शासन में इन एसी कोच में केवल अंग्रेज, हाई लेवल सरकारी अफसर, राजा-नवाब और नामी उद्योगपतियों को ही चलने की इजाजत थी.
फ्रंटियर मेल के एसी कोच को फर्स्ट क्लास कहते थे, जिसमें टॉयलेट, खास तरह की बर्थ और चेयर व लाइट आदि के साथ नहाने की भी सुविधा थी.
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