Sep 29, 2024, 11:32 PM IST

ब्लाउज और पेटीकोट के बिना पहनी जाती थी साड़ी, जानें इससे जुड़े 7 रोचक तथ्य

Meena Prajapati

भारत की महिलाओं को साड़ी पहनना खूब लुभाता है. दूसरा, इस पहनावे को सभ्यता और संस्कार से भी जोड़ा गया है. 

तीज-त्योहार में साड़ियों का बिजनेस अलग ही लेवल पर पहुंच जाता है. भारत की साड़ियों की कई खूबियां हैं, आइए एक-एक करके जानते हैं. 

साड़ी संस्कृत शब्द 'सट्टिका' से बना है जिसका अर्थ है कपड़े की पट्टी. अब इसे साड़ी कहा जाने लगा. 

बाजार में मिलने वाली सभी साड़ियों का साइज एक सा नहीं होता है. एक साड़ी की लंबाई 3.5 से 9 गज होती है. 

कलमकारी, बालूचरी, मधुबनी ऐसी साड़ियां हैं जिन पर कोई न कोई कहानी छपी होती है. इन चित्रकारी के माध्यम से साड़ियों पर काम किया जाता है. 

ब्रिटिश राज के दौरान महिलाओं ने साड़ी के साथ ब्लाउज और पेटीकोट पहनना शुरू कर दिया था. ब्लाउज फ्रेंच और पेटीकोट मिडिल इंग्लिश का शब्द है.  

चंदेरी की साड़ी ऐसी है जिसे खास सोने के तार और कशीदाकारी के साथ बनाया जाता है. 

कांजीवरम साड़ी को तैयार होने में पूरा एक साल लगता है. इस पर हाथ का बारीक काम होता है. इसकी कीमत भी लाखों में होती है. 

बनारस की बनारसी, तमिलनाडु की कांजीवरम, गुजरात की बांधनी, महाराष्ट्र की नौवारी, पश्चिम बंगाल की तांत, ओडिशा की बोमकाई साड़ी और मध्य प्रदेश की चंदेरी साड़ी की अलग पहचान है.