Jan 17, 2025, 03:55 PM IST
सिद्ध अघोरी बनने के लिए देनी पड़ती हैं 3 परीक्षा
Kuldeep Panwar
आम आदमी अघोरियों को बेहद खौफनाक और रहस्यमयी मानता है. उनके बारे में आपको कई तरह की कहानियां सुनने को मिल जाएंगी.
खुद को भगवान शिव का अनुयायी मानने वाले अघोर पंथियों की तिलिस्मी दुनिया में सबसे बड़ी अहमियत गुरु दीक्षा की मानी जाती है.
गुरु दीक्षा मिले बिना कोई भी अघोरी सिद्ध नहीं माना जाता है. अघोरी को गुरु दीक्षा हासिल करने के लिए कठोर परीक्षा से गुजरना पड़ता है.
तंत्र विद्या हासिल करने के बावजूद कोई अघोरी तब तक हर काम करने लायक सिद्ध नहीं बन सकता, जब तक उसे गुरु दीक्षा ना मिल जाए.
गुरु दीक्षा पाने के लिए अघोर अपनी जान भी दे सकते हैं, लेकिन गुरु का आशीर्वाद पाने के लिए उन्हें तीन तरह की परीक्षा देनी पड़ती है.
अघोरी बनने के इच्छुक शिष्य को अपने गुरु के प्रति समर्पण दिखाने वाली इन तीन परीक्षाओं में गुरु का हर आदेश पूरा करना पड़ता है.
अघोरी बनने के इच्छुक को सबसे पहले गुरु बनाकर उनसे बीज मंत्र लेना होता है. इसे हिरित दीक्षा कहते हैं, जिसे कोई भी ले सकता है.
हिरित दीक्षा के बाद दूसरी परीक्षा शिरित दीक्षा की होती है. इसमें गुरु शिष्य से वचन लेकर उसके हाथ, कमर या गले में काला धागा बांधते हैं.
गुरु हाथ में जल लेकर शिष्य को आचमन कराते हुए उसके व अपने बीच के नियम बताता है. इनका पालन शिष्य को हर हाल में करना पड़ता है.
अघोरी बनने की सबसे कठोर परीक्षा रंभत दीक्षा होती है, जिसके नियम बेहद कठोर होते हैं. यह दीक्षा गुरु आसानी से किसी शिष्य को नहीं देते हैं.
रंभत दीक्षा ग्रहण करने के लिए शिष्य को अपने ऊपर पूरा अधिकार गुरु को देना होता है यानी गुरु मरने के लिए भी कहे तो उसे करना होगा.
गुरु रंभत दीक्षा देने से पहले शिष्य की कई तरह की कठोर परीक्षाएं लेते हैं. इन परीक्षाओं में पास होने पर रंभत दीक्षा योग्य माना जाता है.
रंभत दीक्षा हासिल करने वाले शिष्य के लिए गुरु का आदेश ही दुनिया की आखिरी बात होती है. गुरु ही चाहे तो इससे शिष्य आजाद हो सकता है.
गुरु रंभत दीक्षा उसी शिष्य को देते हैं, जिसे वो उत्तराधिकारी मानते हैं. इस शिष्य को ही गुरु अघोरपंथ से जुड़े सारे रहस्य और सिद्धि बताते हैं.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. DNA Hindi इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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