शेषनाग के अवतार माने जाने वाले बलराम द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के बड़े भाई के तौर पर जन्मे अवतरित हुए थे. उन्हें अपने समय का सबसे बड़ा योद्धा माना जाता था.
हथियार के तौर पर किसान के हल को धारण करने वाले बलराम को इतना शक्तिशाली माना जाता है कि वे अकेले ही पूरे विश्व की सेना को समाप्त कर सकते थे.
इतना बड़ा महायोद्धा होने के बावजूद बलराम ने महाभारत के युद्ध में दुर्योधन की कौरव सेना या युधिष्ठिर की पांडव सेना में से किसी का भी साथ नहीं दिया था.
श्रीकृष्ण ने अपनी पूरी सेना दुर्योधन को सौंप दी थी और खुद महज एक सारथी बनकर पांडवों की तरफ से युद्ध में उतरे थे, लेकिन बलराम किसी तरह से भी युद्ध में शामिल नहीं हुए थे.
क्या महाभारत जैसे महायुद्ध में बलराम जैसे महायोद्धा के शामिल नहीं होने के कारण आप जानते हैं? नहीं जानते हैं तो चलिए आज हम आपको ये सारे कारण बताते हैं.
दरअसल बलराम हस्तिनापुर के साथ अपने परिवार के पारिवारिक नाते के कारण कौरव-पांडव, दोनों को एक ही मानते थे. वे युद्ध में किसी एक का पक्ष नहीं लेना चाहते थे.
बलराम उस वादे से भी बंधे हुए थे, जो उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ मिलकर दुर्योधन के साथ किया था. इस वादे में उन्होंने कहा था कि वे और कृष्ण कभी दुर्योधन के खिलाफ युद्ध में हथियार नहीं उठाएंगे.
बलराम ने इस वादे की याद दिलाते हुए श्रीकृष्ण को भी महाभारत के युद्ध में नहीं लड़ने की सलाह दी थी. इसी कारण श्रीकृष्ण ने युद्ध में हथियार नहीं उठाने की प्रतिज्ञा ली थी.
बलराम ने आखिरी पल तक भी कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध टालने की कोशिश की थी. उन्होंने दुर्योधन को न्याय का हवाला देकर इसके लिए मनाने की भी कोशिश की थी.
महाभारत के युद्ध में बलराम इस कल्पना से ही दुखी थे कि सगे-संबंधी लड़ाई में एक-दूसरे का खून बहाएंगे. इस कारण युद्ध शुरू होने से पहले ही वे तीर्थयात्रा पर निकल गए थे.
बलराम महाभारत युद्ध के आखिरी यानी 18वें दिन लौटे थे. बलराम के लौटने के समय भीम और दुर्योधन में गदा युद्ध चल रहा था, जिसमें भीम ने दुर्योधन की जांघ तोड़कर उसका वध किया था.
बलराम ने भीम और दुर्योधन के गदा युद्ध के गुरु थे. गदा युद्ध में जांघ पर प्रहार करना गलत होता है. दुर्योधन की जांघ टूटने पर बलराम गुस्से में भीम को मारने दौड़ पड़े थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाकर रोक लिया था.
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