Dec 21, 2023, 03:26 PM IST

शिवजी के गले में क्यों रहते हैं वासुकी नाग

Kuldeep Panwar

भगवान शंकर की पूजा चाहे मूर्ति रूप में की जाए या उनके लिंग स्वरूप का महाभिषेक किया जाए. उनसे वासुकी नाग का लिपटे रहना अति आवश्यक माना जाता है. इसकी कहानी बेहद रोचक है.

भगवान शिव के गले में वास करने वाले वासुकी नाग उन अष्ट नागों यानी 8 नाग देवताओं में से एक हैं, जिनका जिक्र हिंदू धर्म ग्रंथों में किया जाता है.

देवताओं और दानवों में वैसे तो दुश्मनी रहती है, लेकिन मृत्यु को हराकर हमेशा के लिए अमर करने वाला अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन करने को दोनों ने आपस में समझौता किया था.

शिवजी के गले में नागों के राजा वासुकी कब और क्यों आए, इसकी कहानी नाग जाति द्वारा भोलेनाथ की भक्ति और देव-दानवों के इसी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है.

समु्द्र मंथन में मथनी के तौर पर मेरू पर्वत का चयन किया गया, लेकिन इसके चारों तरफ लिपटने वाली रस्सी कहां से आए? 

शिवजी के कहने पर नाग देवताओं में से एक वासुकी ने समुद्र मंथन में खुद को रस्सी के तौर पर पर्वत के चारों तरफ लपेटने के लिए प्रस्तुत किया.

अमृत से पहले निकले हलाहल विष को भगवान शंकर ने पीकर अपने गले में रोका तो उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाने लगे. थोड़ा विष वासुकी नाग ने पीकर उनकी मदद की.

बार-बार पर्वत पर रगड़ खाने से वासुकी नाग का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया, लेकिन वे शिव का नाम लेकर डटे रहे. पहले विष पीने और फिर ऐसी भक्ति दिखाने से शिव वासुकी पर प्रसन्न हो गए.

शिव ने वासुकी नाग से कुछ भी मांगने के लिए कहा. इस पर वासुकी ने हमेशा के लिए भगवान भोलेनाथ का साथ मांगा. मान्यता है कि इसके बाद ही शिव ने वासुकी नाग को अपने गले का हार बना लिया.

तबसे ही वासुकी नाग के बिना शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है. शिवलिंग की स्थापना भी तभी पूरी होती है, जब नागदेवता साथ में विराजित हों.

धार्मिक मान्यता है कि शिवजी की पूजा करते समय यदि नंदी देवता और नागदेवता की पूजा नहीं की जाती है तो महाभिषेक का फल प्राप्त नहीं होता है.