May 18, 2024, 12:35 PM IST

जानें कहां हैं कर्ण के कवच कुंडल, सूर्य और समुद्रदेव करते हैं सुरक्षा 

Nitin Sharma

महाभारत में दानवीर और योद्धाओं में से एक कुंती पुत्र कर्ण को कई जगहों पर अपमान और दुख का सामना करना पड़ा. 

कर्ण माता कुंती और सूर्य देव की संतान थे. कुंती के विवाह से पूर्व ही कर्ण का जन्म हुआ था. लोकलाज के भय से कुंती ने कर्ण का त्याग कर दिया. 

कर्ण जन्म से ही कवच और कुंडल के साथ पैदा हुए थे. यही वजह थी कि उन्हें दुनिया की कोई भी ताकत पराजित नहीं कर सकती थी.

कर्ण दुर्योधन के खास मित्र थे. यही वजह है कि जब उन्हें पता चला कि वह पांडवों के भाई है, फिर भी उन्होंने दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ा और दोस्ती निभाई. 

कर्ण के पास कवच और कुंडल होने तक पांडवों की कौरवों से जीत मुश्किल थी. 

इसी के चलते इंद्र भेष बदलकर कर्ण के पास पहुंचे और उनसे कवच कुंडल का दान मांगा लिया. कर्ण इंद्र  की चाल समझ गये थे. इसके बाद भी उन्होंने बिना अपनी जान की परवाह किए बगैर इंद्र को कवच और कुंडल दान में दे दिये. 

इसी के बाद अर्जुन ने महाभारत युद्ध में कर्ण का वध कर दिया. 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कर्ण की तो मृत्यु हो गई, लेकिन उनके कवच और कुंडल आज भी मौजूद हैं. उन्हें इंद्र ने समुद्र के किनारे पुरी के पास कोर्णिाक में छिपा दिया था. 

आज भी यह कवच कुंडल मौजूद हैं, जिनकी सुरक्षा सूर्य और समुद्र देव करते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.