महाभारत युद्ध में विजयी की प्राप्ती के बाद पांडव लंबे समय तक हस्तिनापुर पर राज करते रहे.
एक समय के बाद युधिष्ठिर और बाकी के पांडव हस्तिनापुर को छोड़कर द्रौपदी के साथ हिमालय की चढ़ाई करते हुए स्वर्गारोहण के लिए निकल पड़े.
इस सफर में युधिष्ठिर को छोड़कर उनके सभी पांडव भ्राता और द्रौपदी रास्ते में ही गिरते चले गए, और उनकी प्राण चली गई.
सिर्फ युधिष्ठिर और उनके साथ एक कुत्ता अपने लक्ष्य तक पहुंच चुके थे. युधिष्ठिर का सामना स्वर्ग के द्वार पर इंद्र देव के साथ हुआ.
उन्होंने युधिष्ठिर को जिंदा ही स्वर्ग आने का निमंत्रण दिया. इंद्र की ओर से शर्त रखी गई कि कुत्ते का साथ उन्हें त्यागना होगा.
युधिष्ठिर ने कुत्ते के बिना स्वर्ग में प्रवेश करने से मना कर दिया. आखिर इंद्र को उनकी बातें स्वीकार करनी पड़ी.
युधिष्ठिर के स्वर्ग में प्रवेश करने के बाद उनका शरीर दिव्य रूप में परिवर्तित हो गया.
युधिष्ठिर की कभी मृत्यु हुई ही नहीं थी, इसलिए उनका अंतिम संस्कार भी नहीं किया गया. वहीं बाकी पांडवों का अंतिम संस्कार कैसे किया गया ये सवाल आज तक एक पहेली ही है.
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