Dec 10, 2023, 09:25 AM IST

महाभारत युद्ध के लिए दौपदी नहीं, ये रानी मानी गई थी जिम्मेदार

Ritu Singh

महाभारत का युद्ध आपसी रिश्तों से उपजे मतभेद से लेकर मनभेद तक पहुंचा और वहां से एक दूसरे के खून का प्यासा बन गया. महाभारत के अंत के साथ ही सतयुग खत्म हुआ और कलयुग आ गया.

महाभारत के युद्ध की एक वजह नहीं थी, कई कारण इसके लिए जिम्मेदार थे और एक के बाद एक वजह इस युद्ध के लिए खड़ी होती गई. लेकिन इस युद्ध का पहला जड़ कौन था और कैसे इसमें स्त्रियों का नाम जुड़ता गया, चलिए जानें.

महाभारत में राजा शांतनु से विवाह के लिए सत्यवती तभी तैयार हुई जब उसके भावी पुत्रों को हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठाया जाए, जबकि राजा शांतनु के पहले पुत्र भीष्म थे और नियमत: वही राजा बनते लेकिन सत्यवती की शर्त महाभारत के बीज का पहला कारण बनी.

जबकि भीष्म पितामाह ने सत्यवती के वचन के लिए ही ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था जिससे उनकी न शादी हो न बच्चे. ताकि कोई सिंघासन की लड़ाई न हो सके.

चित्रांगद हस्तिनापुर की राज गद्दी में बैठे और गन्धर्वों के साथ युद्ध के दौरान मारे गए. चित्रांगद के बाद हस्तिनापुर के राजा बने सत्यवती के दूसरे  पुत्र विचित्रवीर्य.

विचित्रवीर्य के विवाह के लिए भीष्म माता सत्यवती के आदेशानुसार काशी नरेश की पुत्रियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर से अपहरण कर लाए थे.

हस्तिनापुर में राजा विचित्रवीर्य की अकाल मृत्यु हो गई तब सत्यवती ने हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी के लिए अपने जेष्ठ पुत्र महर्षि वेदव्यास को बुलवाया. बता दें कि महर्षि वेदव्यास, पराशर मुनि और सत्यवती के पुत्र थे.

सत्यवती ने व्यास को अपने ज्ञान और तप से अम्बिका और अम्बालिका को गर्भवती करने का आदेश दिया. व्यास जी ने अम्बिका और अम्बालिका को एक-एक कर बुलाया लेकिन अम्बिका महर्षि व्यास देख डर गईं और आंख बंद कर ली जिससे उनका पुत्र धृतराष्ट्र अंधे हुए.

वहीं राजकुमारी अंबालिका महर्षि वेदव्यास के तेज के कारण पीली पड़ गई जिससे पांडु हुए लेकिन वह निस्तेज और अल्पआयु हुए.धृतराष्ट्र अंधे थे इसलिए पांडु राजा बने और महाभारत की दूसरी बड़ी वजह यहां बनी.

महाभारत के युद्ध की एक बड़ी वजह कौरव दुर्योधन की जगह युधिष्ठिर को राजा बनने का प्रस्ताव देने पर था.  राजा के पहले जन्मे बेटे होने के नाते दुर्योधन कुरु साम्राज्य और इसकी राजधानी हस्तिनापुर के राजकुमार थे, अक्सर उन्हें अपने चचेरे भाई युधिष्ठिर को उपाधि देने के लिए मजबूर किया जाता था, जो पांडव भाइयों में से एक थे और उनसे बड़े थे.