रामायण में राजा जनक की चार पुत्रियों का वर्णन किया गया है. इनमें माता सीता, उनकी बहन उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति हैं, लेकिन सीता माता के दो भाई भी थे.
रामायण में भले ही माता सीता के भाईयों का उल्लेख भले ही रामायण न हो, लेकिन दूसरे ग्रंथों में सीता के दो भाईयों के बारें में बताया गया है.
पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सीता और श्री राम का विवाह तय हुआ था. तब विवाह के समय ब्रह्महर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र उपस्थित थे.
राम सीता के विवाह मंत्रोच्चार चल रहा था. इसबीच माता सीता के भाई द्वारा की जाने वाली रस्म की बारी आई. इस रस्म में कन्या का भाई कन्या के आगे-आगे चलते हुए लावे का छिड़काव करता है.
विवाह कराने वाले पुरोहित ने इस प्रथा के लिए माता सीता के भाई बुलाने के लिए कहा तो वहां समस्या खड़ी हो गई, क्योंकि उस समय तक जनक का कोई पुत्र नहीं था.
भाई की रस्म में राजा जनम के पुत्र न होने की वजह से विवाह में विलंब होने लगा. यह देखकर विवाह में मौजूद देवी देवताओं समेत माता पृथ्वी दुखी होने लगी
इसबीच ही विवाह की रस्म में मौजूद एक रक्तवर्ण उठा. उसने राजा जनक और माता सीता से भाई द्वारा की जानें वाली रस्म पूरी करने की अनुमति मांगी.
इस रस्म को पूरी करने वाले मंगलदेव थे, जो राजा जनक के पुत्र और माता सीता के भाई बने.
इसकी वजह यह भी है कि माता सीता पृथ्वी की बेटी थी. वहीं मंगलदेव पुथ्वी के पुत्र थे. इसी संबंध में से मंगलदेव माता सीता के भाई लगते थे.
पौराणिक कथा के अनुसार राजा जनक के छोटे भाई के पुत्र लक्ष्मीनिधि थे, जो रिश्ते में मात सीता के भाई लगते थे