श्रीकृष्ण ने क्यों खाए थे हस्तिनापुर में केले के छिलके
Kuldeep Panwar
महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर की राजगद्दी के लिए हुआ था, लेकिन इसमें पूरी दुनिया के योद्धाओं ने भाग लिया था.
महाभारत के युद्ध को दुनिया का सबसे भयंकर युद्ध माना जाता है, जिसमें महज 18 दिन के अंदर दोनों सेनाओं के करोड़ों योद्धा मारे गए थे.
भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि महाभारत का युद्ध कितना भयंकर होगा. इस कारण उन्होंने युद्ध को टालने के लिए कई प्रयास किए थे.
श्रीकृष्ण ने पांडवों के हस्तिनापुर की गद्दी छोड़ने के बदले महज 5 गांव देने की मांग भी दुर्योधन के सामने रखी थी, लेकिन वह नहीं माना था.
इस मांग को दुर्योधन के सामने रखने के लिए श्रीकृष्ण पांडवों का दूत बनकर हस्तिनापुर गए थे, जहां उनके लिए राजसी भोज का आयोजन किया गया था.
दुर्योधन के राजसी छप्पन भोग छोड़कर श्रीकृष्ण बिना खाना खाए महात्मा विदुर की कुटी पहुंच गए थे, जो कौरवों-पांडवों के ही सौतेले चाचा थे.
मांडव्य ऋषि के श्राप के कारण विदुर दासी के पुत्र के रूप में जन्मे थे, लेकिन वे यह जानते थे कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का ही अवतार हैं.
विदुर और उनकी पत्नी विदुरानी श्रीकृष्ण के परम भक्त थे. इसी भक्ति के कारण श्रीकृष्ण छप्पन भोग छोड़कर उनकी कुटिया पर पहुंच गए थे.
कुटिया पर उस समय महात्मा विदुर नहीं थे. मां विदुरानी श्रीकृष्ण को दरवाजे पर देखकर सुधबुध भूल गईं और अपने देवता के चरणों में बैठ गईं.
श्रीकृष्ण ने भूख लगने की बात कही तो मां विदुरानी घर में कुछ और भोजन नहीं होने के चलते केले लेकर उन्हें खिलाने के लिए आ गईं.
विदुरानी श्रीकृष्ण को केले छील-छीलकर खिला रही थी. लेकिन उनकी भक्ति में खोकर वे गूदा नीचे फेंक रही थीं और छिलके श्रीकृष्ण को दे रही थीं.
श्रीकृष्ण भी भक्त की भक्ति में खोकर उनके दिए केले के छिलके ही खाते रहे. विदुर वहां पहुंचे तो विदुरानी से बेहद नाराज हो गए.
विदुर केले का गूदा श्रीकृष्ण को खिलाने लगे तो उन्होंने वह भी खा लिया. फिर श्रीकृष्ण बोले गूदा खाने में वो आनंद नहीं मिला, जो मां के हाथ से छिलके खाने में मिल रहा था.
श्रीकृष्ण का भक्तों के प्रति यह प्रेम देखकर विदुर और उनकी पत्नी ही नहीं वहां मौजूद हर शख्स हैरान रह गया और सभी ने उन्हें नमन किया.
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