Jul 20, 2024, 07:00 PM IST

सफलता का मार्ग दिखाते हैं गीता के ये श्लोक 

Abhay Sharma

अर्थ- कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है पर कर्म के फलों में कभी नहीं. इसलिए कर्म करो और फल की चिंता मत करो.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ- क्रोध से व्यक्ति की मति मारी जाती है और मति मारी जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है. इससे मनुष्य खुद का ही नाश कर बैठता है.

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

अर्थ- श्रद्धा रखने और अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले व्यक्ति, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं और ज्ञान प्राप्त होने पर परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं. 

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ 

अर्थ- जिससे किसी को कष्ट नहीं पहुंचता, जो अन्य किसी के द्वारा विचलित नहीं होता, जो सुख-दुख में, भय और चिंता में समभाव रहता है वह मुझे अत्यन्त प्रिय है.  

यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:। हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:॥

अर्थ- आत्मा को न शस्त्र काट सकता है, न आग जला सकती है, न पानी भिगो सकता है और न ही हवा उसे सुखा सकती है. 

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥

अर्थ- विषयों वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से व्यक्ति को उनसे आसक्ति हो जाती है और इससे उनमें इच्छा पैदा होती है, ऐसे में  इच्छा में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है.

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

अर्थ- श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करते हैं वैसा ही आचरण दूसरे भी करते हैं. ऐसे में वह जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लगते हैं. 

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

अर्थ- अगर तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और अगर विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे. इसलिए उठो और युद्ध करो. 

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥