वरुणावत मैं लाक्षागृह जला था तब तो माता कुंती पांडवों के साथ थीं लेकिन जब पांडव वनवास गए थे तब माता कुंती उनके साथ नहीं थीं.
पांडवों को 12 साल का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास मिला था. उस समय माता कुंती उनके साथ नहीं गई थीं.
असल में माता कुंती के स्वास्थ्य और उचित देखभाल लिए पांडव चिंतित थे कि वनवास में वह कष्ट कैसे झेल पाएंगी.
ऐसे में विदुर ने पांडवों के सामने ये प्रस्ताव रखा कि वह माता कुंति को उनके पास छोड़ दें.
माता कुंति पांडवों के साथ जाने की जिद पर अड़ी थीं लेकिन विदुर के समझाने पर कि द्रोपदी पांडवों के साथ हैं उनकी देखभाल के लिए. तब कुंती विदुर के घर रहने पर मान गईं.
पूरे 13 साल कुंती विदुर के घर रहीं थीं. बता दें कि विदुर धृतराष्ट्र और पांडु के ही भाई थे लेकिन एक दासी के गर्भ से जन्म लेने की वजह से उन्हें उतना सम्मानीय स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे.
महात्मा विदुर तीनों भाईयों में सबसे बड़े थे लेकिन दासी पुत्र होने की वजह से उन्हें राजपद नहीं सौंपा गया था.