Dec 4, 2023, 12:32 AM IST

अर्जुन को क्यों था श्रीकृष्ण पर आंख मूंदकर विश्वास

Kuldeep Panwar

महाभारत की चर्चा कभी भी श्रीकृष्ण और अर्जुन के बिना पूरी नहीं होगी. हमेशा कहा जाएगा कि अर्जुन को विश्व का बेस्ट धनुर्धर गुरु द्रोणाचार्य ने बनाया, लेकिन प्रतिभा का उपयोग उन्हें श्रीकृष्ण ने ही सिखाया था.

युद्धभूमि में अपनों के सामने धनुष-बाण उठाना हो या प्रतिज्ञा की आड़ में जान बचा रहे जयद्रथ का वध हो, अर्जुन ने हमेशा श्रीकृष्ण की कही बात पर आंख मूंदकर विश्वास किया.

आज हम आपको वो पांच कारण बताने जा रहे हैं, जिनसे आप समझ जाएंगे कि आखिर अर्जुन को श्रीकृष्ण पर इतना अंधविश्वास क्यों था कि वे उनका ही अनुसरण करते थे.

अर्जुन और श्रीकृष्ण में दोस्ती का इतना गहरा रिश्ता था कि वे आपस में सामान्य इंसान की तरह व्यवहार करते थे. भगवद गीता में अर्जुन को कृष्ण का विष्णु स्वरूप देखने पर पछताते हुए भी दिखाया गया है.

श्रीकृष्ण ने हमेशा अर्जुन और उनके परिवार को संकट में बचाया था. वन में भोजन खत्म होने पर दुर्वासा मुनि के श्राप से बचाना हो या चीरहरण के समय द्रौपदी की रक्षा करना. श्रीकृष्ण हमेशा अर्जुन के साथ दिखाई दिए.

महाभारत के युद्ध को पल भर में खत्म करने की ताकत रखने के बावजूद श्रीकृष्ण महज अर्जुन के सारथी बने. युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सबसे बड़े सलाहकार की भूमिका निभाई और अर्जुन को ही महान योद्धाओं को खत्म करने का श्रेय लेने दिया.

श्रीकृष्ण ने कभी भी अर्जुन को अपना अंधाविश्वास करने के लिए नहीं कहा बल्कि उन्होंने हमेशा उसकी मुश्किलों की राह यूनिक कॉन्सेप्ट्स के जरिये समझाई, जिससे अर्जुन को उस पर पक्का यकीन हुआ.

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन-मृत्यु, सगे-संबंधी का भेद महज मौखिक नहीं समझाया बल्कि अलौकिक विराट रूप से इसका वास्तविक दर्शन भी कराया, जिसके बाद अर्जुन के लिए सांसारिक मोह-माया में भेद करना कठिन नहीं रहा.

महज अर्जुन ही श्रीकृष्ण पर यकीन नहीं करते थे बल्कि कान्हा खुद भी अपने सखा अर्जुन पर पक्का विश्वास करते थे. यही कारण था कि अपनी मृत्यु के बाद द्वारकावासियों की जिम्मेदारी वे अर्जुन को ही सौंप गए थे.

श्रीकृष्ण ने द्वारकावासियों की किस्मत का फैसला भी खुद नहीं किया था बल्कि वे अपने पिता वसुदेव से महज इतना कह गए थे कि यह फैसला अब अर्जुन ही लेगा. वह जो तय करेगा, वही द्वारकावासियों की किस्मत होगी.