महाभारत काल में पांडव पूजा और यज्ञ तो करते थे लेकिन मंदिर नहीं जाते थे.
इतना ही नहीं, भगवान की मूर्ति पूजा या उनके आगे माथा भी नहीं टेकते थे.
हिंदू होते हुए भी पांडव आखिर ऐसा क्यों करते थे और इसके पीछे वजह क्या थी, चलिए जानें.
महाभारत ग्रंथ के अनुसार, पांडवों का धार्मिक जीवन मुख्य रूप से वैदिक परंपराओं और अनुष्ठानों पर आधारित था.
यज्ञ, मन्त्र और देवताओं की स्तुति वैदिक धर्म के मुख्य अंग थे. यह वैदिक काल था. उन दिनों देवी-देवताओं की पूजा मूर्तियों के माध्यम से नहीं होती थी.
पांडव कई देवी-देवताओं के महान भक्त थे, लेकिन मूर्ति पूजा नहीं करते थे. क्योंकि उस समय वैदिक धर्म में मूर्ति पूजा नहीं की जाती थी. ईश्वर को निराकार माना जाता था.
वहीं, पांडव भगवान कृष्ण को ईश्वर मान लिया था.
मूर्ति पूजा 500 ईसा पूर्व से शुरू हुई थी और संभवतः 3139 ईसा पूर्व से 3102 ईसा पूर्व के बीच हुआ था.
उस समय शिवलिंग और यज्ञ कुण्ड निश्चित रूप से प्रतीकात्मक पूजा के प्रतीक थे. नदियों और पेड़ों के पास यज्ञ और पूजा की जाती थी.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी सामान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)