Sep 20, 2024, 10:13 AM IST
वनवास ही क्यों गए थे प्रभु श्रीराम से लेकर धर्मराज युधिष्ठिर तक
Smita Mugdha
त्रेता युग हो या फिर द्वापर युग धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों के लिए बहुत सी बाधाएं आई थीं.
त्रेता में प्रभु श्रीराम को वनवास भेजा गया था और द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर और पांडव भाइयों को वनवास जाना पड़ा था.
आप जानते हैं कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाले पौराणिक किरदारों को वनवास का दुख क्यों झेलना पड़ा था?
वनवास का जीवन कठिन होता था और इसमें प्रकृति के सानिध्य में और कम संसाधनों में रहना पड़ता था.
इसमें आम लोगों के लिए यह संदेश निहित है कि जीवन में सुख और वैभव का त्याग करना पड़े तो विचलित नहीं होना चाहिए.
वनवास में रहने के दौरान सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने वाले देव पुरुषों को ऋषि मुनियों का सानिध्य मिलता था.
ऋषि-मुनियों के इस सानिध्य से उन्हें सत्य, धर्म और नैतिकता से जुड़े प्रश्नों के जवाब मिलते थे जिसे वे आचरण में दोहराते थे.
वनवास के कठिन जीवन से लौटकर जब राम और धर्मराज युधिष्ठिर ने राजकाज संभाला, तो यह जनता के लिए संदेश था.
आज भी यह नैतिक शिक्षा है कि दुख के घने और मु्श्किल दिनों के बाद सुख आता है और असत्य पर सत्य की जीत होती है.
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