पूरे शहर में अंधेरा कर 12 साल में क्यों बदली जाती है भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां
Ritu Singh
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनी होती हैं, लेकिन माना जाता है कि उसमें भागवान कृष्ण की आत्मा उसमें बसी होती है.
क्योंकि भगवान कृष्ण के अंतिम संस्कार के समय उनका दिल नहीं जला था इसलिए उसे समुद्र में प्रवाहित कर दिया गया था.
कृष्ण का ये दिल बहरकर पुरी के समुद्रतट पर आ गया था और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में वह दिल ब्रह्म रूप में समाहित हो गया.
भगवान जगन्नाथ की नीम से बनी लकड़ियों को हर 12 साल में जब बदला जाता है तो कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है.
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को हर 12 साल में बदला जाता है और इस अनुष्ठान को नवकलेबारा नाम दिया गया है.
जिस समय मूर्तियां बदली जाती हैं उस समय पूरे शहर की बत्तियां बंद कर दी जाती हैं और हर जगह अंधेरा कर दिया जाता है
मूर्तियों को बदलने की प्रक्रिया को गोपनीय रखा जाता है. मूर्तियों को बदलते समय केवल एक मुख्य पुजारी वहां मौजूद होते हैं.
और उसकी आंखों में भी पट्टी बांध दी जाती है. पूरी प्रक्रिया बंद कमरे में होती है और बिलकुल अंधेरा होता ताकि भगवान ब्रह्म स्वरूप में मूर्ति में फिर से विराजमान हो सकें.