भारत पर शासन करने वाले मुस्लिम शासकों में खिलजी वंश की भी अहम भूमिका रही है. इस वंश ने अफगानिस्तान के हेलमंड के तुर्किक कबीले से निकलकर हिंदुस्तान कब्जाया था.
खिलजी वंश की बात चलते ही सबसे ज्यादा याद अलाउद्दीन खिलजी को किया जाता है, जिसके कारण राजपूत रानी पद्मावती के जौहर की कहानी पर फिल्म भी बन चुकी है.
इस खिलजी वंश के शासन की नींव रखने वाले बख्तियार खिलजी की पूजा पश्चिम बंगाल के दक्षिण दिनाजपुर जिले के एक गांव में पीरबाबा के तौर पर होती है.
बख्तियार खिलजी की कब्र दक्षिण दिनाजपुर जिले के गंगारामपुर ब्लॉक के गांव पीरपाल में है. इस गांव के मुस्लिम ही नहीं हिंदू भी बख्तियार की पूजा करते हैं.
नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक, पीरपाल गांव में हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदाय के लोग पलंग, चौकी या खाट पर नहीं सोते बल्कि वे बख्तियार खिलजी के सम्मान में जमीन पर या मिट्टी से बने चबूतरे पर सोते हैं.
बख्तियार खिलजी साल 1193 में अफगानिस्तान से आकर दिल्ली में गुलाम वंश के शासक कुतुबद्दीन ऐबक की फौज में अधिकारी बना था.
बख्तियार बाद में मलिक हिजबर अलादीन की फौज में चला गया. बदायूं और अवध में बहादुरी से खुश होकर अलादीन ने उसे मिर्जापुर रियासत का सरदार बना दिया था.
बख्तियार ने फिर सेना बढ़ाकर लूटपाट और दूसरे राज्य जीतने शुरू कर दिए. उसने ही नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला बौद्ध मठ तोड़े थे.
कहा जाता है कि बंगाल लूटने के बाद बख्तियार खिलजी की सेना ने ब्रह्मपुत्र पार करके तिब्बत लूटने की कोशिश की, लेकिन मुंह की खाकर वापस लौटना पड़ा.
बख्तियार खिलजी की सेना वापस लौटते समय नदी में डूब गई और महज 100 सैनिकों के साथ देवकोट पहुंचा वह खुद बेहद बीमार पड़ गया.
यह भी कहा जाता है कि बख्तियार खिलजी का बीमारी की हालत में ही उसके भतीजे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सिपहसालार अमीर अली मर्दान से कत्ल करा दिया था.
कुछ इतिहासकारों ने यह भी लिखा है कि अलाउद्दीन ने खुद ही गले मिलने के बहाने अपने चाचा की कमर में कटार घोंपकर उसकी हत्या कर दी थी और रियासत कब्जाकर दिल्ली जीतने का मिशन शुरू किया था.
बख्तियार खिलजी की कब्र मौजूदा पीरपाल गांव में बनाई गई थी, जिसे स्थानीय लोगों ने पीरबाबा मानकर पूजने लगे थे. आज भी यहां उसकी पूजा होती है और कई कहानियां सुनाई जाती हैं.