इतिहास की किताबों में मुगल बादशाह अकबर को अधिकतर जगह पर कट्टर मुस्लिम के बजाय सभी धर्मों का सम्मान करने वाला बताया गया है.
माना जाता है कि अकबर में ये गुण अपनी मां हमीदा बानू बेगम से आए थे, जो खुद भी भारत में मुगलिया सल्तनत स्थापित होने के बाद स्थानीय धार्मिक रीति-रिवाजों को भी मानने लगी थीं.
क्या आपको पता है कि हमीदा बानू मुस्लिम होने के बावजूद रोजाना प्रभु श्रीराम की रामायण पढ़ती थीं और उसके बारे में अकबर को भी सुनाती थीं?
अकबर की मां की रामायण की किताब इस समय कतर की राजधानी दोहा के म्यूजियम ऑफ इस्लामिक आर्ट में मौजूद है, जो फारसी भाषा में है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अकबर ने खासतौर पर अपनी मां के लिए वाल्मीकी रामायण का फारसी में अनुवाद कराया था, जिसे Jaipur Manuscript कहा जाता है.
हमीदा बानू बेगम मुगल सल्तनत के दूसरे बादशाह हुमायूं की दूसरी बेगम थीं. अकबर ने उनके निधन के बाद उन्हें मरियम मकानी (मदर मैरी) की उपाधि दी थी.
हमीदा बानू की रामायण 450 पन्नों की है, जिसमें 56 बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स का इस्तेमाल प्रभु श्रीराम और लंकापति रावण के प्रसंग को बेहतर तरीके से समझाने के लिए हुआ है.
अकबर की मां की किताब में यह भी है कि वाल्मीकी ने कैसे रामायण को लिखा था. इसमें संस्कृत भाषा के शृग और श्लोकों को फारसी में अनुवाद करके लिखा गया है.
फारसी भाषा में लिखी रामायण में हर श्लोक के अनुवाद के बाद 'अल्लाह बेहतर जानता है' लाइन है. यह रामायण लाहौर के कलाकारों के एक छोटे से समूह ने तैयार की थी.
दिल्ली के बादशाह की मां की रामायण सुदूर देश कतर कैसे पहुंची, इसकी भी एक कहानी है. साल 1604 में इसे सेंट्रल मुगल लाइब्रेरी में रखा गया था.
सेंट्रल मुगल लाइब्रेरी से यह कई बार अलग-अलग लोगों के पास पहुंची. इस दौरान पानी और कीड़ों से यह थोड़ी खराब भी हुई, लेकिन फिर संरक्षित कर ली गई.
माना जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह ने भी कुछ समय तक इसे अपने पास रखा था. दारा शिकोह वेद-पुराणों के ज्ञान के लिए 'पंडित' कहलाते थे.
इसी तरह एक हाथ से दूसरे हाथ तक पहुंचते हुए आखिर में यह रामायण दोहा पहुंची, जहां इसे संरक्षित करके म्यूजियम में रखा गया है.