Feb 7, 2024, 09:05 AM IST

कौन थीं रमाबाई, जिन्होंने अंबेडकर को 'बाबा साहेब' बनाया

Kuldeep Panwar

सफल इंसान के पीछे किसी औरत का हाथ होने की कहावत आपने कई बार सुनी होगी. यह कहावत भीमराव अंबेडकर से भी जुड़ी है, जिन्होंने अपनी सफलता में अपनी पत्नी का हाथ माना था.

समाज के प्रति अपने कार्यों के लिए 'बाबा साहेब' कहलाए डॉ. भीमराव अंबेडकर ने खुद माना था कि उनकी यह सफलता उनकी पत्नी रमाबाई अंबेडकर के त्यागों की देन है.

रमाबाई का जन्म 7 फरवरी, 1898 को मौजूदा महाराष्ट्र के वानांड में हुआ था. अंबेडकर समर्थकों में रमाई के तौर पर मशहूर रमाबाई को भीमराव अंबेडकर प्यार से रामू् कहते थे.

बेहद गरीब दलित परिवार की बेटी रमाबाई कभी पढ़-लिख नहीं सकीं. उनका विवाह 8 साल की उम्र में साल 1906 में डॉ. भीमराव अंबेडकर से हुआ था.

रमाबाई और डॉ. अंबेडकर के पांच बच्चे थे, लेकिन यशवंत को छोड़कर बाकी चारों का बचपन में ही निधन हो गया. इस तरह उनका जीवन परेशानी भरा ही रहा.

रमाबाई ने डॉ. अंबेडकर को पारिवारिक परेशानियों से दूर रखा. खुद अनपढ़ होने के बावजूद उन्होंने डॉ. अंबेडकर को विदेश जाकर उच्च शिक्षा लेने को कहा.

रमाबाई का मानना था कि उच्च शिक्षा लेने से डॉ. अंबेडकर अपने सामाजिक न्याय व सुधार के प्रयासों को ज्यादा जोरदार तरीके से पूरा कर पाएंगे.

डॉ. अंबेडकर के विदेश में पढ़ने के दौरान रमाबाई को भारत में बहुत सारी पारिवारिक और आर्थिक परेशानियां उठानी पड़ीं, लेकिन उन्होंने इसकी भनक डॉ. अंबेडकर को नहीं लगने दी.

डॉ. अंबेडकर ने अपनी सफलताओं का श्रेय हमेशा रमाबाई को दिया. उन्होंने 1940 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'थॉट्स ऑफ पाकिस्तान' रमाबाई को ही समर्पित की थी.

किताब के Preface में उन्होंने अपने जीवन पर रमाबाई के प्रभाव को स्वीकार करते हुए लिखा था कि साधारण भीम को डॉ. अंबेडकर बनाने का श्रेय रमाबाई को ही है. 

पूरा जीवन संघर्ष करने वालीं रमाबाई लंबी जिंदगी नहीं जी सकीं. लगातार बीमारी के कारण 26 मई, 1935 को महज 37 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था.