क्या आपने नोटिस किया है कि कंपनी की चिट्ठी में लिखी CTC तो ठीक-ठाक होती है, लेकिन हर महीने हाथ में आने वाले पैसे बहुत कम होते हैं.
आमतौर पर लोग CTC सुनकर उसे 12 से भाग देकर अंदाज़ा लगा लेते हैं कि सैलरी कितनी होगी. लेकिन ये सही कैल्कुलेशन नहीं है. 6 लाख की CTC का मतलब 50 हजार सैलरी नहीं होती है.
CTC माने कॉस्ट टू कंपनी. यानी वो पूरा पैसा जो सालभर में कंपनी आप पर लगाती है. इसमें आपकी सैलरी, आपके लिए PF में कंपनी का कॉन्ट्रीब्यूशन,टैक्सेस, और वेरिएबल शामिल होते हैं.
वहीं आपकी CTC से PF कॉन्ट्रिब्यूशन (आपका और कंपनी दोनों का), टैक्सेस और वेरिएबल कटने के बाद जो पैसे बचते हैं, वो होती है आपकी सैलरी.
आपने नोटिस किया होगा कि कई लोग सैलरी बताते वक्त आपसे कहते हैं कि कट-कटा के इतने पैसे आ जाते हैं. ये जो कट-कटा के पैसे आपके अकाउंट में आते हैं, वहीं आपकी सैलरी है.
कई बार कंपनियां आपके वेरिएबल का हिस्सा ज्यादा बढ़ा देती हैं. इससे आपका पैकेज तो मोटा दिखता है लेकिन हाथ में आने वाली सैलरी बहुत कम हो जाती है. यह आपकी आर्थिक स्थिति पर असर डालता है.
कभी भी HR से सैलरी की बात करते वक्त ये क्लियर कर लें कि आपकी CTC कितनी होगी और हाथ में कितने पैसे आएंगे. इससे आपको जॉइन करने से पहले ही क्लैरिटी रहेगी कि आपको कितने रुपये मिलेंगे.