Nov 30, 2024, 09:03 PM IST

अकबर ने कैसे खरीदे थे रीवा के राजा से तानसेन

Kuldeep Panwar

मुगल बादशाह अकबर के नवरत्न दरबारियों के बारे में आपने सुना होगा. इनमें तानसेन भी थे, जिन्हें आज तक सबसे महान गायक माना जाता है.

कहा जाता है कि तानसेन की आवाज में इतना जादू था कि प्रकृति भी झूमने लगती थी. फूल खिलने लगते थे और बादल बरसने लगते थे.

क्या आप जानते हैं तानसेन और अकबर का नाता कैसे जुड़ा था? नहीं जानते तो चलिए आपको इससे जुड़ा दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं.

अकबर ने पहली बार तानसेन की आवाज रीवा रियासत (मौजूदा समय में मध्य प्रदेश का हिस्सा) के राजा रामचंद्र सिंह जूदेव के दरबार में सुनी थी.

तानसेन रीवा दरबार के राज गायक थे. अकबर उनकी आवाज के ऐसे मुरीद हुए कि राजा जूदेव से तानसेन को अपने दरबार के लिए मांग लिया.

राजा जूदेव अकबर को ना नहीं कह सकते थे, लेकिन गुस्से में उन्होंने तानसेन को बंधक की तरह पालकी में बैठाकर अकबर के पास भेज दिया.

कहते हैं कि तानसेन के बदले अकबर ने रीवा रियासत को ऐसी तोपें दीं, जिन्हें अजेय माना जाता था. ये आज भी रीवा के किला परिसर में मौजूद हैं.

तानसेन को अकबर ने अपने नवरत्नों में शामिल किया. अकबर के कहने पर तानसेन ने 16 हजार रागों और 360 तालों का गहन अध्ययन किया.

तानसेन ने इनमें से 200 मूल राग व 92 मूल ताल स्थापित किए, जिनमें अकबर के पसंदीदा राग दरबारी और शाम कल्याण राग भी शामिल हैं. 

तानसेन ने दरबारी असावरी, दरबारी शहाना, दरबारी कानाहरा, मियां की तोड़ी, मियां की मल्हार और मिया की सारंग जैसे राग भी सृजित किए.

कहते हैं कि तानसेन के निधन के बाद उनकी संगीत की किताब पर बेरी का एक पौधा उग गया, जो बाद में बेरी का विशाल पेड़ बन गया.

इस पेड़ के बारे में मान्यता है कि इसके पत्ते खाने से आवाज में तानसेन जैसा सुरीलापन आ जाता है. इसके चलते संगीत सीखने वाले वहां जाते हैं.

मकरंद ब्राह्मण के निधन के बाद हजरत मौहम्मद गौस ने ही तानसेन को बेटे की तरह पाला और नामी-गिरामी संगीतज्ञों से संगीत सिखवाया.

शिक्षा पूरी होने के बाद तानसेन रीवा के राजगायक बने. कहते हैं राजा रामचंद्र उनके इतने मुरीद थे कि एक बार एक गीत के एक करोड़ रुपये दिए थे.