Mar 9, 2025, 12:31 AM IST

आज भी इन 6 भारतीय तवायफ का नाम इज्जत से लेते हैं लोग

Kuldeep Panwar

भारत में हिंदी फिल्मों के कारण तवायफों की इमेज वेश्या जैसी बना दी गई है. इसके चलते तवायफ को बहुत अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है.

भारतीय इतिहास में देखें तो तवायफों का दर्जा इसके उलट दिखता है. तब उन्हें नाच-गाने, शायरी-संगीत को बढ़ावा देने वाली कलाकार मानते थे.

पुराने समय में बड़े घरों में युवाओं को नफासत और तहजीब सिखाने के लिए टीचर के तौर पर तवायफों को ही बुलाया जाता था.

उस जमाने में तवायफों को बेहद इज्जत से देखते थे. वे बेहद रईस होती थी. लखनऊ के पुराने दस्तावेजों में तवायफों के इनकम टैक्स चुकाने का भी जिक्र है.

हम आपको ऐसी 6 तवायफों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें इस पेशे को गरिमा देने वाला मानकर आज भी उनका नाम इज्जत से लिया जाता है.

हम आपको ऐसी 6 तवायफों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें इस पेशे को गरिमा देने वाला मानकर आज भी उनका नाम इज्जत से लिया जाता है.

बनारस-कलकत्ते की मशहूर तवायफ गौहर जान को मौजूदा फिल्मी संगीत की गॉडमदर कहते हैं, जिन्होंने 2 नवंबर, 1902 को डिस्क पर पहला भारतीय गीत रिकॉर्ड कराया था.

आर्मेनियाई कपल की संतान गौहर अपने समय की सबसे मशहूर तवायफ थी, जो एक महफिल में गाने के लिए 101 सोने की गिन्नी लेती थीं.

एंजेलिना योवर्ड के असली नाम वाली गौहर ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बड़े पैमाने पर दान दिया था. वे रानियों से महंगी पोशाक पहनती थीं.

मुहम्मदी खानम ने तवायफ होकर भी अवध के नवाब वाजिद अली शाह से निकाह किया और उन्हें बेगम हजरत महल का नाम मिला था.

1856 में अंग्रेजों के अवध कब्जाने पर नवाब कलकत्ता भाग गए थे, लेकिन बेगम हजरत महल ने लखनऊ में ही रहकर 1857 का स्वाधीनता संग्राम लड़ा था.

तवायफ जद्दनबाई बॉलीवुड की पहली महिला म्यूजिक डायरेक्टर थीं. वे मशहूर एक्ट्रेस नरगिस की मां और फिल्म स्टार संजय दत्त की नानी थीं. 

जद्दनबाई को तवायफ होकर भी समाज में नाम कमाने के लिए ही नहीं बल्कि स्वाधीनता सेनानियों को छिपाकर बचाने के लिए भी याद करते हैं.

जोहरा बाई को तवायफ से भी ज्यादा शास्त्रीय गायिका के तौर पर याद करते हैं. उनका नाम फैयाज खान और बड़े गुलाम अली जैसे गायक भी सम्मान से लेते थे.

अजीजनबाई तवायफ थीं, लेकिन उनका नाम सुनकर भी अंग्रेज कांपने लगते थे, क्योंकि 1857 के स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने जबरदस्त बहादुरी दिखाई थी.

तवायफ रसूलन बाई को बनारस घराने की गायिका के तौर पर याद करते हैं. महान शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान तो उन्हें 'ईश्वर की आवाज' कहते थे.