Nov 9, 2023, 12:29 AM IST

कैसे होती है कृत्रिम बारिश, इससे कैसे घटेगा दिल्ली का प्रदूषण

Kuldeep Panwar

दिल्ली का वायु प्रदूषण रिकॉर्ड स्तर छू रहा है. कुछ इलाकों में प्रदूषण का स्तर 800-900 के पार पहुंच रहा है, जो दिल्ली की आबोहवा के जहरीले गैस चैंबर में तब्दील हो जाने का इशारा दे रहा है.

दिल्ली में जहरीली हवा से निपटने के लिए अरविंद केजरीवाल की सरकार ने अब कृत्रिम बारिश का सहारा लेने का निर्णय लिया है. इसके लिए IIT Kanpur के वैज्ञानिकों की मदद मांगी गई है, जिनके साथ मीटिंग भी हो चुकी है.

ऐसे में आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर कृत्रिम बारिश यानी आर्टिफिशियल रेन कैसे कराई जाती है और यह प्रदूषण के खिलाफ कितनी कारगर साबित होगी? चलिए इन सवालों का जवाब हम देते हैं.

Artificial Rain शब्द से ही आपको अंदाजा लग गया होगा कि यह प्रकृति नहीं बल्कि इंसान द्वारा कराई जाने वाली बारिश है. इसके लिए नकली बादल तैयार किए जाते हैं, जो आसमान में जाकर बारिश करते हैं.

नकली बादल तैयार करने के लिए सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे रसायनों का प्रयोग किया जाता है. इस प्रक्रिया को Cloud Seeding कहा जाता है.

क्लाउड सीडिंग को सबसे पहले फरवरी, 1947 में पेश किया गया था. यह प्रदर्शन ऑस्ट्रेलिया के बाथर्स्ट में जनरल इलेक्ट्रिक लैब ने किया था.

कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया तीन चरणों की है. पहले चरण में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, यूरिया के यौगिक जैसे रसायनों के जरिये संबंधित इलाकों में कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं. ये बादल हवा से जल वाष्प सोखते हैं और फिर संघनन की प्रक्रिया को शुरू करते हैं.

दूसरे चरण में नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड के जरिये बादलों के द्रव्यमान को बढ़ाया जाता है. इसके बाद ये बादल आसमान में भेजे जाते हैं.

तीसरे चरण में कृत्रिम बादलों पर हवाई जहाज की मदद से सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ का छिड़कावकरते हैं, जिससे बादल ice crystal में बदल जाते हैं और बारिश के रूप में बरसने लगते हैं.

यदि आसमान में बादल पहले से मौजूद हों तो सीधे तीसरे चरण की प्रक्रिया अपनाकर बारिश कराई जा सकती है. आज लगभग 40 देशों में इस तकनीक के जरिये सूखे इलाकों में बारिश कराई जाती है.

अब जान लीजिए कि दिल्ली के प्रदूषण में यह कृत्रिम बारिश कैसे मददगार साबित हो सकती है. दरअसल दिल्ली का प्रदूषण धूल के कणों यानी PM पार्टिकल्स के कारण बना हुआ है.

धूल के कणों ने दिल्ली की हवा में आई नमी के साथ मिलकर वातावरण में एक लेयर तैयार कर दी है. इस लेयर के कारण वाहनों, आग जलने आदि से होने वाला प्रदूषण दिल्ली से बाहर नहीं जा पा रहा है.

कृत्रिम बारिश होने पर वातावरण में बनी धूल के कणों की यह परत पानी के साथ घुलकर धुल जाएगी. इससे दिल्ली के आसमान में फंसा प्रदूषण बाहर निकलने लगेगा और इसका स्तर घट जाएगा.

साल 2018 में भी दिल्ली का प्रदूषण स्तर बढ़ने पर इसी तरह कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी की गई थी. इसके लिए ISRO का विमान भी ले लिया गया था, लेकिन बाद में मौसम ही इसके अनुकूल नहीं बन पाया.

इस बार भी कृत्रिम बारिश कराने के लिए IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने 20-21 नवंबर तक इंतजार करने के लिए कहा है, क्योंकि उस समय मौसम के इस बारिश के लिए अनुकूल होने के आसार लग रहे हैं.