Jan 17, 2025, 06:57 AM IST

ताजमहल में लाइटिंग क्यों नहीं होती? जानें राज की बात

Raja Ram

ताजमहल का नाम सुनते ही हमारी आंखों के सामने सफेद संगमरमर का एक भव्य स्मारक उभरता है. यह दुनिया के सात अजूबों में से एक है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसे कभी रोशन क्यों नहीं किया जाता?

आजकल हम अकबर के मकबरे, आगरा के लाल किले जैसे स्मारकों को अक्सर रंग-बिरंगी लाइटिंग से सजते हुए देखते हैं. लेकिन ताजमहल इनसे क्यों अलग है? 

ताजमहल पर कभी लाइटिंग होती थी, लेकिन यह प्रथा केवल कुछ विशेष अवसरों पर ही देखने को मिलती थी.

सबसे पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ताजमहल को फ्लड लाइट से रोशन किया गया था.

1945 में जब मित्र देशों ने जर्मनी के आत्मसमर्पण की विजय के रूप में 8 मई को विजय दिवस मनाया, तब ताजमहल पर रोशनी की गई थी.

लेकिन उसके बाद ताजमहल पर लाइटिंग का इस्तेमाल बहुत कम हुआ. 1997 में, प्रसिद्ध पियानोवादक यान्नी के संगीत कार्यक्रम के दौरान ताजमहल पर फिर से रंग-बिरंगी लाइटिंग की गई.

यह कार्यक्रम इतना प्रभावशाली था कि इसे भारत और दुनिया भर के देशों में लाइव दिखाया गया. इसके बाद ताजमहल में पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली.

हालांकि, इस कार्यक्रम के अगले दिन ताजमहल के परिसर में कई कीड़े मरे हुए पाए गए. इससे ताजमहल की दीवारों पर कीड़ों के निशान पड़ने लगे, जो संगमरमर को नुकसान पहुंचा सकते थे.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस मामले की जांच की और पाया कि लाइटिंग से आकर्षित होने वाले ये कीड़े ताजमहल की दीवारों पर बैठकर मलमूत्र छोड़ते थे, जिससे संगमरमर को हानि पहुंचती थी.

इसके बाद, ताजमहल पर लाइटिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में आदेश दिया कि ताजमहल के 500 मीटर के भीतर किसी भी प्रकार का कार्यक्रम पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन किए बिना नहीं हो सकता.

ताजमहल के संरक्षण के लिए यह कदम उठाया गया ताकि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को बचाया जा सके.