Dec 21, 2024, 10:40 PM IST

जानते हैं समोसा तिकोना ही क्यों बनता है

Kuldeep Panwar

आलू भरा समोसा पूरे भारत में हर किसी की चहेती डिश है. बच्चे-बूढे हों या जवान, भारत के हर कोने में इसके दीवाने मिल जाएंगे.

भारत में रोजाना करीब 5 से 6 करोड़ समोसे खाए जाते हैं. यही कारण है इन्हें छोटी सी दुकान से लेकर बड़े रेस्टोरेंट तक में देखा जा सकता है.

समोसा यूं तो आलू से बने मसाले को अंदर भरकर तैयार किए जाते हैं, लेकिन अब मैगी समोसा, मटन समोसा जैसे इसके कई रूप दिखने लगे हैं.

समोसा के अंदर क्या भरा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. क्या आपने कभी सोचा है कि हर तरह का समोसा तिकोना ही क्यों बनाया जाता है.

समोसा आपने कभी भी गोल या चौकोर नहीं देखा होगा. समोसा होने का मतलब ही तिकोनी शेप में मसाला भरकर बनाए स्नेक्स से लगाया जाता है.

समोसे को तिकोने आकार में ही बनाए जाने के पीछे एक खास तरह की साइंस को कारण माना जाता है, जो किचन से जुड़ी हुई है.

दरअसल समोसे को यदि गोल आकार में बनेगा तो उसके अंदर तेल भरने पर वह फट सकता है और पूरा मसाला कढ़ाही में बिखर सकता है.

यह भी कहा जाता है कि समोसे को भले ही सबसे ज्यादा पसंद भारत में किया जाता है, लेकिन यह भारतीय नहीं है बल्कि विदेश से यहां आया है.

समोसे को ईरान की देन माना जाता है, जहां इसे फारसी में संबुष्क कहते थे. ईरान के करीब मिस्र के पिरामिडों की शेप समोसे जैसी ही होती है.

माना जाता है कि ईरानी कारीगरों ने मिस्र के पिरामिडों की शेप से प्रभावित होकर ही समोसे को तिकोना बनाया था. इसका यही रूप रंग तब से चला आ रहा है.

किताबों की बात करें तो समोसे का सबसे पहला जिक्र 11वीं सदी में चर्चित इतिहासकार अबुल-फल बेहाकी ने अपने एक लेख में किया था.

बेहाकी ने अफगानिस्तान में महमूद गजनवी के दरबार कीमा और मेवों से भरी समोसे जैसी नमकीन डिश खाई थी, जो उन्हें बेहद भा गई थी.

भारत में समोसे का आगमन ईरान और उसके आसपास के व्यापारियों के जरिये होने की बात मानी जाती है. तब इसमें सब्जी भरी जाती थी.

भारत में 16वीं सदी में पुर्तगाली अपने साथ आलू लेकर आए. तब पहली बार आलू का समोसा बना. आज आलू के बिना समोसे को सोचा ही नहीं जा सकता है.