क्या सच्चा प्रेम त्याग मांगता है? श्रीकृष्ण से समझें प्रेम का सार
Raja Ram
प्रेम को अक्सर सिर्फ एक भावना माना जाता है, लेकिन श्रीकृष्ण के अनुसार, यह केवल भावनात्मक आकर्षण नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई से जुड़ा एक दिव्य अनुभव है.
श्रीकृष्ण ने अपने जीवन और गीता के उपदेशों से प्रेम का वास्तविक अर्थ बताया—प्रेम में स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं, यह त्याग और समर्पण से पूर्ण होता है.
श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रेम का आधार त्याग है. जो प्रेम में कुछ पाने की अपेक्षा रखता है, वह वास्तव में प्रेम नहीं, बल्कि सौदा कर रहा होता है.
राधा और श्रीकृष्ण का प्रेम सांसारिक नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है. इसमें केवल भक्ति और समर्पण है, कोई स्वार्थ नहीं.
प्रेम को बाध्य नहीं किया जा सकता. श्रीकृष्ण बताते हैं कि प्रेम को छीनकर प्राप्त नहीं किया जा सकता, यह केवल स्वतंत्रता और सहजता से पनपता है.
सुदामा और श्रीकृष्ण की मित्रता प्रेम का श्रेष्ठ उदाहरण है. इसमें न धन का लोभ था, न पद की आकांक्षा—सिर्फ निस्वार्थ प्रेम और सच्ची मित्रता थी.
श्रीकृष्ण के अनुसार, प्रेम केवल व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं होता. भक्ति प्रेम का सर्वोच्च रूप है, जिसमें व्यक्ति ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण करता है.
सच्चा प्रेम वह है जिसमें व्यक्ति बिना किसी अपेक्षा के अपने प्रिय के लिए त्याग करता है. श्रीकृष्ण के अनुसार, प्रेम में स्वार्थ नहीं, केवल सेवा और समर्पण होता है.