इस श्लोक में 7 चिरंजीवियों का जिक्र है. कोई वचन, वरदान या श्राप से बंधा हुआ है और सभी दैवीय शक्तियों से संपन्न हैं.चलिए जानें ये सप्त चिरंजीवी कौन हैं ?
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जिसका इस धरती पर जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है.
परशुराम. भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं. परशुराम, श्रीराम के पूर्ववर्ती थे, लेकिन अमर होने के कारण वो त्रेतायुग में भी जीवित रहे. किंवदंती है कि परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से सभी क्षत्रिय राजाओं का विनाश किया था.
राजा बलि भक्त प्रह्लाद के वंशज माने गए हैं. विष्णु जी जब वामन का भेष धारण करके राजा बलि के दान की परीक्षा लेने आए, तब राजा बलि ने वामन को अपना सब कुछ दान कर दिया. इस बात से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था.
अंजनी पुत्र हनुमान को अमरता का वरदान देवी सीता ने दिया था.लंका की अशोक वाटिका में श्रीराम का संदेश देने पर प्रसन्न होकर देवी सीताजी ने हनुमान को ये आशीर्वाद दिया था.
रावण के छोटे भाई विभीषण को अमरता का वरदान भगवान राम ने दिया था. माना जाता है आज भी विभीषण पृथ्वी लोक पर मौजूद हैं. विभीषण भी भगवान राम के भक्त हैं.
चारों वेदों और 18 पुराणों के रचनाकार महर्षि वेदव्यास को भी अमरता का वरदान प्राप्त है.
कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे. उनका नाम परम तपस्वी ऋषियों में शामिल है. और अपने इसी तप के कारण उन्हें अमरता का वरदान मिला.
गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को महाभारत में उसकी क्रूरता के लिए श्रीकृष्ण ने श्राप दिया. इसके चलते वह आज भी पृथ्वी पर भटक रहा है. अश्वत्थामा के माथे पर एक मणि थी जिसे निकाल लिया गया था.