May 30, 2024, 12:15 AM IST

हनुमान जी को क्यों सुनाई थी भगवान राम ने मौत की सजा

Kuldeep Panwar

रामायण में माता सीता और प्रभु श्रीराम की ही गाथा नहीं है बल्कि इसमें हनुमान जी की प्रभु राम के प्रति भक्ति की पराकाष्ठा के भी दर्शन होते हैं.

भगवान राम के प्रति हनुमान जी के लगाव और भक्ति के दर्शन रामायण में कई बार करने का मौका मिलता है, जिसकी तुलना भी असंभव है.

प्रभु राम भी हनुमान जी से बेहद स्नेह रखते थे, पर क्या आप जानते हैं कि एक मौका ऐसा भी आया था, जब राम ने हनुमान को मृत्यु दंड दे दिया था.

पौरोणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार यह बहस छिड़ गई कि प्रभु राम से भी ज्यादा बड़ा अस्तित्व इस संसार में उनके नाम का है.

महान संतों और विद्वत ब्राह्मणों की इस सभा में हनुमान जी भी मौजूद थे और चुपचाप सभी विद्वानों की बात को बेहद ध्यान से सुन रहे थे.

नारद मुनि ने दावा किया कि राम से भी बड़ा उनका नाम है. महर्षि विश्वामित्र ने उनकी बात खारिज करते हुए इस साबित करने की चुनौती दी.

अपना दावा साबित करने के लिए नारद मुनि ने हनुमान जी को मोहरा बनाया और उन्हें सभा के बाद सभी ऋषियों का सत्कार करने को कहा.

नारद मुनि ने महर्षि विश्वामित्र को राजा बताते हुए उनका आदर-सत्कार करने से हनुमान जी को रोक दिया. इस पर विश्वामित्र नाराज हो गए.

विश्वामित्र भगवान राम के गुरु थे. उन्होंने क्रोध में राम से कही बात पूरी करने का वचन लिया. वचन देने पर उन्होंने हनुमान को मृत्यु दंड देने को कहा.

राम दुविधा में फंस गए. गुरु को वचन दिया था और हनुमान को बेहद प्रेम करते थे. गुरु को सर्वोपरि मानकर उन्होंने हनुमान को मृत्यु दंड देने का फैसला लिया.

हनुमान जी को यह पता चला तो उन्होंने नारद जी से कहा. नारद जी ने हनुमान जी को आंखें बंद करके राम नाम का जाप करने का आदेश दिया.

हनुमान राम नाम जपने में पूरी तरह ध्यानमग्न हो गए. प्रभु राम ने उन्हें मारने के लिए तीर छोड़े, लेकिन एक भी तीर निशाने पर नहीं लगा.

राम ने क्रोध में हनुमान जी पर ब्रह्मास्त्र से वार कर दिया, लेकिन तब भी राम नाम जप रहे हनुमान का कुछ नहीं बिगड़ा. राम अचरज में पड़ गए.

तब नारद मुनि ने राम और गुरु विश्वामित्र को पूरी बात बताई और कहा कि राम से भी बड़ा उनका नाम है, यह हनुमान का बाल बांका नहीं होने से साबित हो गया है.

नारद मुनि की बात सुनकर गुरु विश्वामित्र ने भी उनके दावे को सही माना और फिर भगवान राम को अपने वचन से मुक्त कर दिया.