Jan 16, 2025, 07:43 PM IST

अघोरी, नागा साधुओं से क्यों होते हैं अलग?

Abhay Sharma

दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुंभ में देश और दुनिया के कोने-कोने से नागा साधु और अघोरी साधु भी पहुंचे हैं, अक्सर नागा और अघोरी साधु को एक ही मान लिया जाता है. 

लेकिन आपको बता दें कि अघोरी, नागा साधु से अलग होते हैं. अघोरी साधु अघोर पंथ पर चलते हैं और अघोर पंथ एक गूढ़ परंपरा है, जिसमें जीवन-मृत्यु के चक्र को समझने का प्रयास किया जाता है.

अघोरी श्मशान जैसी जगहों पर रहकर साधना करते हैं, वे साधना में नरमुंड का उपयोग करते हैं और यह मृत्यु और जीवन के चक्र का प्रतीक माना जाता है.

इसके अलावा अघोरी साधु मांस का सेवन करते हैं, ऐसा कहा जाता है कि अघोरी लाशों और जानवरों का कच्चा मांस तक खा जाते हैं. आमतौर अघोरी काले वस्त्र पहनते हैं या निर्वस्त्र रहते हैं. 

दूसरी ओर नागा साधु धर्म रक्षक और समाज में धर्म का प्रचार करने वाले माने जाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में इस परंपरा की शुरुआत की थी.

ये साधु अखाड़ों में रहकर अनुशासित और संगठित जीवन जीते हैं और कठिन तपस्या, शरीर पर भस्म लगाना उनकी साधना का हिस्सा होता है. नागा साधुओं का जीवन सादगी और धर्म के लिए समर्पित होता है.

इसके अलावा नागा साधु मांस, मदिरा का सेवन नहीं करते. बताते चलें कि ​अघोरी साधु तंत्र साधना करते हैं जबकि नागा साधु भक्ति में लीन रहते हैं, अघोरी साधुओं के लिए ब्रहाचर्य का कोई नियम नहीं होता है. 

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर्स से संपर्क करें.)