द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्णा के रूप में जन्म लिया था. यह भगवान विष्णु का आठवां अवतार था.
एक ओर द्वापर युग कृष्ण लीलाओं से संपूर्ण रहा वहीं, श्री कृष्ण को धर्म की स्थापना के मार्ग में कुछ श्राप भी भोगने पड़े थे.
मनुष्य शरीर में बंधें होने के कारण इन श्रापों को कृष्ण ने भोगा भी था.
आइए जानते हैं कि कौन-कौन से श्राप कृष्ण को मिले थे और इस श्राप को किसने और क्यों दिया था.
कृष्ण को पहला श्राप बाल्य काल में मिला था जब वह गोकुल के बाहर तपस्या में बैठे ऋषि दुर्वासा की साधना को भंग कर दिए थे
तब दुर्वासा ने कृष्ण को श्राप दिया कि वह जिस मैय्या के लाड़-प्यार में शरारती बने हैं उन्हीं मैय्या से वर्षों तक दूर रहेंगे. इसी श्राप के चलते कृष्ण ने गोकुल का त्याग कर दिया था.
श्री कृष्ण को दूसरा श्राप गांधारी ने कौरव वंश की विधवाओं का विलाप सुनकर दिया था. गांधारी का कहना था कि वह भगवान थे और चाहते तो महाभारत को रोक सकते थे.
गांधारी ने युदुवंश के विनाश का श्राप श्री कृष्ण को दिया था. इस श्राप के चलते उनके कुल का विनाश हुआ था.
कृष्ण को तीसरा श्राप यमराज ने दिया था. हालांकि यह पूरी तरह श्राप के श्रेणी में नहीं आता था. एक बार कृष्ण संदीपनी मुनि के पुत्र को यमराज से पुनः जीवित लेने गए थे.
तब यमराज ने श्री कृष्ण से युद्ध किया मगर वह युद्ध में हार गए. इसके बाद यमराज ने कृष्ण को भूलवश यह कहा था कि कृष्ण के प्राण हरने वह समय से पहले आएंगे और हुआ भी वैसा ही.
तो इन 3 श्राप को अपने बाल्यकाल से लेकर मृत्यु तक कृष्ण ने झेला था.