भारतीय परंपरा में आदिकाल से नदियों का बेहद महत्व है. नदियों को भारतीय पुराणों में देवी अवतार मानकर उन्हें पूजने की परंपरा रखी गई है.
इसी कारण आदिकाल से नदी किनारे ही गांव-शहर बसाने की परंपरा थी. नदियों को जीवनदायिनी होने के कारण बेहद पवित्र माना जाता रहा है.
नदियों के इस महत्व के बावजूद कुछ नदियों को श्रापित व अपवित्र मानते हैं. मान्यता है कि इनका एक बूंद पानी भी शरीर से छूने पर पुण्य खत्म हो जाते हैं.
बिहार और उत्तर प्रदेश को बांटने वाली कर्मनाशा नदी का नाम ही बता देता है कि ये श्रापित है, इसलिए इस नदी का पानी कोई भी नहीं छूता है.
मान्यता है कि कर्मनाशा नदी का पानी इतना श्रापित है कि यदि उसकी एक बूंद भी जिसे छू लेती है, उसके काम चंद मिनटों में बिगड़ जाते हैं.
बिहार के गया जिले में पिंडदान होता है, लेकिन यहां से गुजरने वाली फल्गु नदी इतनी श्रापित है कि इसका पानी भी जमीन के अंदर ही बहता है.
मान्यता है कि भगवान राम जब महाराज दशरथ का पिंडदान करने पहुंचे थे तो माता सीता ने फल्गु नदी को श्राप दिया था और तब से इसे अपवित्र मानते हैं.
जानापाव की पहाड़ी से निकली चंबल नदी देश की बड़ी नदियों में से एक है. इसे भी अपवित्र मानते हैं, जिसके पानी में कोई नहीं नहाता है.
मान्यता है कि राजा रंतिदेव ने हजारों जानवरों को मारा था. उन्हीं के रक्त से ये नदी उत्पन्न हुई थी. कुछ कहानियों में चंबल को द्रौपदी द्वारा श्राप देने की बात कही गई है.
कोसी नदी नेपाल से निकलकर बिहार में बहती हुई गंगा में मिलती है. इसमें हर साल आने वाली भयंकर बाढ़ से हर साल हजारों लोग प्रभावित होते हैं.
कोसी नदी से होने वाली बरबादी के कारण इसे 'बिहार का शोक' कहते हैं. मान्यता है कि कोसी नदी को मिले श्राप के कारण इतनी बरबादी होती है.